________________
बहुगागमै जोग - अप्पा बहुगपरूवणं
खीणकसायवीदरागछदुमत्था तेत्तिया चेव ॥ १०८ ॥
१, ८, ११२. ]
सुगममेदं ।
सजोगिकेवली पवेसणेण तत्तिया चेव ॥ १०९ ॥
एदं पि सुगमं । जेसु जोगेसु सजोगिगुणट्ठाणं संभवदि, तेसिं चेवेदमप्पा बहुअं
घेवं ।
सजोगिकेवली अर्द्ध पडुच्च संखेज्जगुणा ॥ ११० ॥
को गुणगारो ? संखेज्जसमया । जहा ओघम्हि संखेज्जसमयसाहणं कदं, तहा एत्थ विकाव्यं ।
[ २९१
अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ १११ ॥ एत्थ वि जहा ओघहि गुणगारो साहिदो तहा साहेदव्त्रो । णवरि अप्पिदजोगजीवरा सिपमाणं णादूण अप्पाबहुअं कायव्यं ।
पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ ११२ ॥
उक्त बारह योगवाले क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ जीव पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥ १०८ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
सयोगिकेवली जीव प्रवेशकी अपेक्षा पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ।। १०९ ।।
यह सूत्र भी सुगम है । किन्तु उपर्युक्त बारह योगोंमेंसे जिन योगों में सयोगिकेवल गुणस्थान सम्भव है, उन योगोंका ही यह अल्पबहुत्व ग्रहण करना चाहिए । सयोगिकेवली संचयकालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥ ११० ॥
गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। जिस प्रकार ओघमें संख्यात समयरूप गुणकारका साधन किया है, उसी प्रकार यहांपर भी करना चाहिए ।
सयोगिकेवलीसे उपर्युक्त बारह योगवाले अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ।। १११ ॥
जिस प्रकार से ओघ में गुणकार सिद्ध किया है, उसी प्रकारसे यहां पर भी सिद्ध करना चाहिए । केवल विशेषता यह है कि विवक्षित योगवाली जीवराशिके प्रमाणको जानकर अल्पबहुत्व करना चाहिए ।
बारह योगवाले अप्रमत्तसंयतयों से प्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित
उक्त हैं ॥ ११२ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org