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धवलाका गणितशास्त्र
(२५) (२) उत्कृष्ट-अनन्त-अनन्त (न न उ) केवलज्ञानराशिके समप्रमाण है। उपर्युक विवरणसे यह अभिप्राय निकलता है कि उत्कृष्ट अनन्तानन्त अंकगणितकी किसी प्रक्रियाद्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता, चाहे वह प्रक्रिया कितनी ही दूर क्यों न ले जाई जाय । यथार्थतः वह अंकगणितद्वारा प्राप्त ज्ञ की किसी भी संख्यासे अधिक ही रहेगा। अतः मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि केवलज्ञान अनन्त है, और इसीलिये उत्कृष्ट-अनन्तानन्त भी अनन्त है ।
इस प्रकार त्रिलोकसारान्तर्गत विवरण हमें कुछ संशयमें ही छोड़ देता है कि परीतानन्त और युक्तानन्तके तीन तीन प्रकार तथा जघन्य अनन्तानन्त सचमुच अनन्त है या नहीं, क्योंकि ये सब असंख्यातके ही गुणनफल कहे गये हैं, और जो राशियां उनमें जोड़ी गई हैं वे भी असंख्यातमात्र ही हैं। किन्तु धवलाका अनन्त सचमुच अनन्त ही है, क्योंकि यहाँ यह स्पष्टतः कह दिया गया है कि 'व्यय होनेसे जो राशि नष्ट हो वह अनन्त नहीं कही जा सकती। धवलामें यह भी कह दिया गया है कि अनन्तानन्तसे सर्वत्र तात्पर्य मध्यम-अनन्तानन्तसे है । अतः धवलानुसार मध्यम-अनन्तानन्त अनन्त ही है। धवलामें उल्लिखित दो राशियोंके मिलानकी निम्न रीति बड़ी रोचक है
एक ओर गतकालकी समस्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी अर्थात् कल्पकालके समयोंको (time-instants) स्थापित करो। (इनमें अनादि-सातत्य होनेसे अनन्तत्व है ही।) दूसरी ओर मिथ्यादृष्टि जीवराशि रक्खो । अब दोनों राशियोंमेंसे एक एक रूप बराबर उठाउठा कर फेकते जाओ। इस प्रकार करते जानेसे कालराशि नष्ट हो जाती है, किन्तु जीवराशिका अपहार नहीं होता। धवलामें इस प्रकारसे यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मिथ्यादृष्टि राशि अतीत कल्पोंके समयोंसे अधिक है ।
___ यह उपर्युक्त रीति और कुछ नहीं केवल एकसे-एककी संगति ( one-to-one correspondence) का प्रकार है जो आधुनिक अनन्त गणनाकोंके सिद्धान्त (Theory of infinite cardinals) का मूलाधार है। यह कहा सकता है कि वह रीति परिमित गणनांकोंके मिलानमें भी उपयुक्त होती है, और इसीलिये उसका आलम्बन दो बड़ी परिमित राशियोंके मिलानके लिये लिया गया था- इतनी बड़ी राशियां जिनके अंगों (elements)
१ 'संते वए णटुंतस्स अणंतत्तविरोहादो'।ध. ३, पृ. २५. . २ धवला ३, पृ. २८.
३ 'अणंताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण' । ध. ३, पृ. २८ सूत्र ३. देखो टीका, पृ. २८. ' कधं कालेण मिणिज्जते मिच्छाइट्ठी जीवा ' ? आदि ।
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