________________
(२४)
षट्खंडागमकी प्रस्तावना
जहाँ
(अप ज) जघन्य युक्त-अनन्त (न यु ज)= (अप ज) मध्यम-युक्त-अनन्त (न यु म) है >न यु ज, किंतु < न यु उ
उत्कृष्ट-युक्त-अनन्त (न यु उ)= न न ज - १ जहां
जघन्य-अनन्तानन्त (न न ज)=(न यु ज)
मध्यम-अनन्तानन्त (न न म) >है न न ज, किंतु <न न उ जहां
न न उ उत्कृष्ट अनन्तानन्तके लिये प्रयुक्त है, जो कि नेमिचंन्द्रके अनुसार निम्न प्रकारसे प्राप्त होता है
।।
ननज। (ननज)} |
(ननज)
।
ननज) || ननज) (ननज)
+छह राशियां
क्ष
I
(ननज)
S
क्षक्ष ।
= {kse ? (स)} + दो राशिया
= { (न ? (अन)
अब, केवलज्ञान राशि ज्ञ से भी बड़ी है और
न न उ = केवलज्ञान - ज्ञ + ज्ञ = केवलज्ञान. पर्यालोचन- उपर्युक्त विवरणका यह निष्कर्ष निकलता है
(१) जघन्य-परीत-अनन्त (न प ज) अनन्त नहीं होता जबतक उसमें प्रक्षिप्त किये गये छह द्रव्यों या चार राशियोंमेंसे एक या अधिक अनन्त न मान लिये जायं ।
१ छह राशियां ये हैं- [१) सिद्ध, (२) साधारण वनस्पति निगोद, (३) वनस्पति, (४) पुद्गल, (५) व्यवहारकाल और (६) अलोकाकाश.
२ ये दो राशियां हैं- (१) धर्मद्रव्य, (२) अधर्मद्रव्य, (इन दोनोंके अगुरुलघु गुणके अविभाग-प्रतिच्छेद)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org