SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छक्खंडागमे जीवद्वाणं [ १, ८, १०२. इंदियाणुवादेण पंचिंदिय - पंचिंदियपज्जत्तएस ओघं । णवरि मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १०३ ॥ दस्स सुत्तस्स अत्थो बुच्चदे - सेसिंदिएस एगगुणट्ठाणेसु अप्पाबहुअस्साभावपदुप्पायणमुहेण पंचिंदियप्पा बहुअपदुप्पायण पंचिंदिय-पंचिंदिय पज्जत्तगहणं कदं । जधा ओघम्मि अप्पाबहुअं कदं, तथा एत्थ वि अणूणाहियमप्पा बहुअं कायव्वं । णवरि एत्थ असंजदसम्मादिट्ठीहिंतो मिच्छादिट्ठी अनंतगुणा त्ति अभणिदूण असंखेज्जगुणा त्ति वत्तव्यं, अणंताणं पंचिदियाणमभावा । को गुणगारो ? पदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाओ सेडीओ। केत्तियमेत्ताओ ? सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ। को पडिभागो ? घणंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पदरंगुलाणि । अथवा पंचिदिय-पंचिदियपज्जत्तमिच्छादिट्ठीणमसंखेज्जदिभागो । को पडिभागो ? सग-सगअसंजदसम्मादिट्ठिरासी । २८८ ] इन्द्रियमार्गणाके अनुवाद से पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तकोंमें अल्पबहुत्व ओके समान है । केवल विशेषता यह है कि असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १०३ ॥ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- शेष इन्द्रियवाले अर्थात् पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तकोंसे अतिरिक्त जीवोंमें एक गुणस्थान होता है, इसलिए उनमें अल्पबहुत्वके अभावके प्रतिपादनद्वारा पंचेन्द्रियोंके अल्पबहुत्वके प्रतिपादन करनेके लिए सूत्र में पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय-पर्याप्तक पदका ग्रहण किया है। जिस प्रकार ओघमें अल्पबहुत्वका कथन किया है, उसी प्रकार यहां भी हीनता और अधिकता से रहित अल्पबहुत्वका कथन करना चाहिए | केवल इतनी विशेषता है कि यहांपर असंयतसम्यग्दृष्टि पंचेन्द्रियोंसे मिथ्यादृष्टि पंचेन्द्रिय अनन्तगुणित हैं, ऐसा न कहकर असंख्यातगुणित हैं, ऐसा कहना चाहिए, क्योंकि, अनन्त पंचेन्द्रिय जीवोंका अभाव है । पंचेन्द्रिय असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे पंचेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं, यहां गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण है । वे जगश्रेणियां कितनी हैं ? जगश्रेणीके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । प्रतिभाग क्या है ? घनांगुलका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है, जो असंख्यात प्रतरांगुलप्रमाण है । अथवा, पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्तक मिथ्यादृष्टियोंका असंख्यातवां भाग गुणकार है । प्रतिभाग क्या है ? अपनी अपनी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि प्रतिभाग है । १ इन्द्रियानुवादेन एकेन्द्रिय - विकलेन्द्रियेषु गुणस्थानभेदो नास्तीत्यल्पबहुत्वाभावः । इन्द्रियं प्रत्युच्यतेपंचेन्द्रियाद्येकेन्द्रियान्ता उत्तरोत्तरं बहवः । पंचेन्द्रियाणां सामान्यवत् । अयं तु विशेषः - मिथ्यादृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy