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________________ १, ८, १०२.] अप्पाबहुगाणुगमे देव-अप्पाबहुगपरूवणं [२८७ तदसंभवा । जदि एवं, तो आणदादिदेवेसु वासपुधत्तंतरेसु संखेज्जावलिओवट्टिदपलिदोवममेत्ता जीवा किण्ण होंति ? ण, तत्थतणमिच्छादिद्विआदीणमवहारकालस्स असंखेज्जावलियत्तं फिट्टिदूण संखेज्जावलियमेत्तअवहारकालप्पसंगा। होदु चे ण, 'आणद-पाणद जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठी दबपमाणेण केवडिया, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण । अणुदिसादि जाव अवराइदविमाणवासियदेवेसु असंजदसम्मादिट्ठी दव्वपमाणेण केवडिया, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुत्तेणेत्ति। एदेण दव्वसुत्तेण जुत्तीए सिद्धअसंखेज्जावलियभागहारगब्भेण सह विरोहा । __ एवं गदिमग्गणा समत्ता । शंका- यदि ऐसा है तो वर्षपृथक्त्वके अन्तरसे युक्त आनतादि कल्पवासी देवोंमें संख्यात आवलियोंसे भाजित पल्योपमप्रमाण जीव क्यों नहीं होते हैं ? समाधान नहीं, क्योंकि, ऐसा माननेपर वहांके मिथ्यादृष्टि आदिकोंके अवहारकालके असंख्यात आवलीपना न रहकर संख्यात आवलीमात्र अवहारकाल प्राप्त होनेका प्रसंग आ जायगा। शंका-यदि मिथ्यादृष्टि आदि जीवोंके अवहारकाल संख्यात आवलीप्रमाण प्राप्त होते हैं, तो होने दो? समाधान-नहीं, क्योंकि, ऐसा मानने पर 'आनत-प्राणतकल्पसे लेकर नवग्रैवेयक विमानवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने है ? पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इन जीवराशियोंके द्वारा अन्तर्मुहूर्तकालसे पल्योपम अपहृत होता है। नव अनुदिशोंसे लेकर अपराजितनामक अनुत्तर विमान तक विमानवासी देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने हैं ? पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इन जीवराशियोंके द्वारा अन्तर्मुहूर्तकालसे पल्योपम अपहृत होता है । इस प्रकार युक्तिसे सिद्ध असंख्यात आवलीप्रमाण भागहार जिनके गर्भ में है, ऐसे इन द्रव्यानुयोगद्वारके सूत्रोंके साथ पूर्वोक्त कथनका विरोध आता है । इस प्रकार गतिमार्गणा समाप्त हुई। दव्वाणु. ७१-७२. (भा. ३, पृ. २८१-२८२.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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