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________________ अप्पा बहुगागमे देव - अप्पाबहुगपरूवणं को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सेसं सुबोज्झं । वेद सम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ८७ ॥ १, ८, ८८. ] at गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सेसं सुगमं । भवणवासिय-वाणवेंतर- जोदिसियदेवा देवीओ सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवीओ च सत्तमा पुढवीए भंगो ॥ ८८ ॥ [ २८१ एसिमिदि एत्थज्झाहारो कायव्वो, अण्णहा संबंधाभावा । खइयसम्मादिट्ठीणमभावं पडि साधम्मुवलंभा सत्तमाए पुढवीए भंगो देसिं होदि । अत्थदो पुण विसेसो अत्थि, तं भणिस्सामो- सव्वत्थोवा भवणवासियसासणसम्माइट्ठी । सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । मिच्छाइट्ठी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो : जगपदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाओ सेडीओ | केत्तियमेत्ताओ ! घणंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जदिभागताओ । को पडिभागो ? असंजदसम्मादिट्ठिरासी पडिभागो । 1 गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । शेष सूत्रार्थ सुबोध्य (सुगम) है । देवोंमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ ८७ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । शेष सूत्रार्थ सुगम है। देवों में भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क देव और देवियां, तथा सौधर्म-ईशानकल्पवासिनी देवियां, इनका अल्पबहुत्व सातवीं पृथिवीके अल्पबहुत्वके समान है ॥८८॥ इस सूत्र में 'इनका इस पदका अध्याहार करना चाहिए, अन्यथा प्रकृतमें इसका सम्बन्ध नहीं बनता है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके अभावकी अपेक्षा समानता पाई जानेसे इन सूत्रोक्त देव देवियोंका सातवीं पृथिवीके समान अल्पबहुत्व है । किन्तु अर्थकी अपेक्षा कुछ विशेषता है, उसे कहते हैं- भवनवासी सासादनसम्यग्दृष्टि देव आगे कही जानेवाली राशियोंकी अपेक्षा सबसे कम हैं। उनसे भवनवासी सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणित हैं। उनसे भवनवासी असंयतसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उनसे भवनवासी मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणित हैं । गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो असंख्यात जगश्रेणीप्रमाण है । वे जगश्रेणियां कितनी हैं ? घनांगुलके प्रथम वर्गमूलके असंख्यातवें भागमात्र हैं । प्रतिभाग क्या है ? असंयतसम्यग्दृष्टि जीवराशि प्रतिभाग है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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