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________________ २८० ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं खवा संखेज्जगुणा ॥ ८० ॥ बहुपदो | देवदीए देवसु सव्वत्थोवा सासणसम्मादिडी ॥ ८१ ॥ सम्मामिच्छादिडी संखेज्जगुणा ॥ ८२ ॥ असंजदसम्मादिट्टी असंखेजगुणा ॥ ८३ ॥ दाणि तिणि वित्ताणि सुबोज्झाणि, बहुसो परुविदत्तादो । मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ८४ ॥ को गुणगारो ? जगपदरस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेजाओ सेडीओ । केत्तियमेत्ताओ ? सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताओ । को पडिभागो ? घणंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जपदरंगुलाणि वा पडिभागो । सेसं सुगमं । असंजदसम्मादिट्टिट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ ८५ ॥ बोज्झमिदं सुतं । खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ८६ ॥ Jain Education International [ १, ८, ८०. तीनों प्रकारके मनुष्योंमें उपशामकों से क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ८० ॥ क्योंकि, इनका प्रवेश बहुत होता है । देवगति में देवों में सासादनसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ ८१ ॥ सासादन सम्यग्दृष्टियों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि देव संख्यातगुणित हैं ॥ ८२ ॥ सम्यग्मिथ्यादृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि देव असंख्यातगुणित हैं || ८३॥ ये तीनों ही सूत्र सुबोध्य अर्थात् सरलता से समझने योग्य हैं, क्योंकि, इनका बहुत वार प्ररूपण किया जा चुका 1 देवोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणित हैं || ८४ ॥ गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो असंख्यात जगणीप्रमाण है । वे जगश्रेणियां कितनी हैं ? जगश्रेणीके असंख्यातवें भागमात्र हैं । प्रतिभाग क्या है ? घनांगुलका असंख्यातवां भाग प्रतिभाग है, अथवा असंख्यात प्रतरांगुल प्रतिभाग है । शेष सूत्रार्थ सुगम है । देवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ ८५ ॥ यह सूत्र सुबोध्य है । देवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियों से क्षायिकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं || ८६ ॥ २ देवगतौ देवानां नारकवत् । स. सि. १, ८. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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