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१, ८, ७९.] अप्पाबहुगाणुगमे मणुस-अप्पाबहुगपरूवणं
[२७९ अप्पसत्थवेदोदएण' दंसणमोहणीयं खतजीवहिंतो अप्पसत्थवेदोदएण चेव दसणमोहणीय उवसमेंतजीवाणं मणुसेसु संखेज्जगुणाणमुवलंमा ।
वेदगसम्मादिड्डी संखेज्जगुणा ।। ७७ ।। सुगममेदं । एवं तिसु अद्धासु ॥ ७८॥
एदस्सत्थो- मणुस-मणुसपज्जत्तएसु णिरुद्धेसु तिसु अद्धासु उवसमसम्मादिट्ठी थोवा, थोवकारणत्तादो। खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा, बहुकारणादो । मणुसिणीसु पुण खइयसम्मादिट्ठी थोवा, उवसमसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा । एत्थ पुव्वुत्तमेव कारणं । उवसामग-खवगाणं संचयस्स अप्पाबहुअपरूवणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि
सम्वत्थोवा उवसमा ॥ ७९ ॥ थोवपवेसादो ।
क्योंकि, अप्रशस्त वेदके उदयके साथ दर्शनमोहनीयका क्षपण करनेवाले जीवोंसे अप्रशस्त वेदके उदयके साथ ही दर्शनमोहनीयका उपशम करनेवाले जीव मनुष्योंमें संख्यातगुणित पाये जाते हैं।
असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानवी मनुष्यनियोंमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ७७ ।।
यह सूत्र सुगम है।
इसी प्रकार तीनों प्रकारके मनुष्योंमें अपूर्वकरण आदि तीन उपशामक गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ।। ७८ ॥
___ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- मनुष्य-सामान्य और मनुष्य-पर्याप्तकोसे निरुद्ध अपूर्वकरण आदि तीन उपशामक गुणस्थानोंमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव अल्प होते हैं, क्योंकि, उनके अल्प होनेका कारण पाया जाता है। उनसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित होते हैं, क्योंकि, उनके बहुत होनेका कारण पाया जाता है। किन्तु मनुष्यनियोंमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव अल्प हैं, और उनसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं। यहां संख्यातगुणित होनेका कारण पूर्वोक्त ही है (देखो सूत्र नं.७५)।
___ उपशामक और क्षपकोंके संचयका अल्पबहुत्व प्ररूपण करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते हैं
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें उपशामक जीव सबसे कम हैं ॥ ७९ ॥ क्योंकि, इनका प्रवेश अल्प होता है। १ प्रतिषु अप्पमत्तवेदोदएण' इति पाठः।
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