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________________ २७८ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, ७३. पमत्त-अप्पमत्तसंजट्टाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥७२॥ कुदो ? थोवकालसंचयादो । खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ७३ ॥ बहुकालसंचयादो। वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ७४॥ खइयसम्मत्तेण संजमं पडिवज्जमाणजीहितो वेदगसम्मत्तेण संजमं पडिवजमाणजीवाणं बहुत्तुवलंभा । मणुसिणीगयविसेसपदुप्पायणटुं उवरिमसुत्तं भणदि णवरि विसेसो, मणुसिणीसु असंजद-संजदासंजद-पमत्तापमत्तसंजदट्ठाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी ॥ ७५॥ कुदो ? अप्पसत्थवेदोदएण दंसणमोहणीयं खतजीवाणं बहूणमणुवलंभा । उवसमसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ७६॥ तीनों प्रकारके मनुष्यों में प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ॥ ७२ ॥ क्योंकि, इनका संचयकाल अल्प है। तीनों प्रकारके मनुष्योंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ७३ ॥ क्योंकि, इनका संचयकाल बहुत है। ___तीनों प्रकारके मनुष्योंमें प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ७४ ॥ क्योंकि, क्षायिकसम्यक्त्वके साथ संयमको प्राप्त होनेवाले जीवोंकी अपेक्षा वेदकसम्यक्त्वके साथ संयमको प्राप्त होनेवाले जीवोंकी अधिकता पाई जाती है । अब मनुष्यनियों में होनेवाली विशेषताके प्रतिपादन करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते हैं केवल विशेषता यह है कि मनुष्यनियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥७५ ॥ क्योंकि, अप्रशस्त वेदके उदयके साथ दर्शनमोहनीयको क्षपण करनेवाले जीव बहुत नहीं पाये जाते हैं। __ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चार गुणस्थानवी मनुष्यनियोंमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ७६ ॥ प्रतिषु 'बणमुवलंभा' इति पाठः। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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