________________
१, ८, ७१.] अप्पाबहुगाणुगमे मणुस-अप्पाबहुगपरूवणं
[२७० खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ६७ ॥ वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ६८ ॥ एदाणि तिण्णि वि सुत्ताणि सुगमाणि । संजदासंजदहाणे सव्वत्थोवा खइयसम्मादिट्ठी ॥ ६९ ॥
खीणदंसणमोहणीयाणं देससंजमे वदृताणं बहूणमभावा । खीणदंसणमोहणीया पाएण असंजदा होदूण अच्छंति । ते संजमं पडिवज्जंता पाएण महब्बयाई चेव पडिवज्जंति, ण देसव्वयाई ति उत्तं होदि ।
उवसमसम्मादिदी संखेज्जगुणा ॥ ७० ॥ खइयसम्मादिद्विसंजदासंजदेहिंतो उवसमसम्मादिहिसंजदासंजदाणं बहूणमुवलंभा। वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ ७१ ॥
कुदो ? बहुवायत्तादो, संचयकालस्स बहुत्तादो वा, उवसमसम्मत्तं पेक्खिय वेदगसम्मत्तस्स सुलहत्तादो वा ।
उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ६७ ॥ क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ६८ ॥ ये तीनों ही सूत्र सुगम हैं।
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें संयतासंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि सबसे कम हैं ।। ६९॥
क्योंकि, दर्शनमोहनीयकर्मका क्षय करनेवाले और देशसंयममें वर्तमान बहुत जीवोंका अभाव है । दर्शनमोहनीयका क्षय करनेवाले मनुष्य प्रायः असंयमी होकर रहते हैं। वे संयमको प्राप्त होते हुए प्रायः महाव्रतोंको ही धारण करते हैं, अणुव्रतोंको नहीं; यह अर्थ कहा गया है।
तीनों प्रकारके मनुष्योंमें संयतासंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ७० ॥
क्योंकि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयत मनुष्य बहुत पाये जाते हैं।
___ तीनों प्रकारके मनुष्योंमें संयतासंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ।। ७१ ॥
क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टियोंकी अपेक्षा वेदकसम्यग्दृष्टियोंकी आय अधिक है, अथवा संचयकाल बहुत है, अथवा उपशमसम्यक्त्वको देखते हुए अर्थात् उसकी अपेक्षा वेदकसम्यक्त्वका पाना सुलभ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org