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________________ २७२१ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, ४९. संजदासंजदट्ठाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्माइट्ठी ॥ ४९॥ कुदो १ देसब्धयाणुविद्धवसमसम्मत्तस्स दुल्लहत्तादो । वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ५० ॥ को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एदम्हादो गुणगारादो णव्वदे समयं पडि तदुवचयादो असंखेज्जगुणत्तेणुवचिदा त्ति असंखेज्जगुणत्तं । एत्थ खइयसम्माइट्ठीणमप्पाबहुअं किण्ण परूविदं ? ण, तिरिक्खेसु असंखेज्जवस्साउएसु चेय खइयसम्मादिट्ठीणमुक्वादुवलंभा । पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु सम्मत्तप्पाबहुअविसेसपदुप्पायणट्ठमुत्तरसुत्तं भणदि णवरि विसेसो, पचिंदियातरिक्खजोणिणीसु असंजदसम्मादिदिसंजदासंजदट्टाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥५१॥ सुगममेदं । वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ५२॥ तिर्यंचोंमें संयतासंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥४९॥ क्योंकि, देशवतसहित उपशमसम्यक्त्वका होना दुर्लभ है। तिर्यचोंमें संयतासंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ५० ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । इस गुणकारसे यह जाना जाता है कि प्रतिसमय उनका उपचय होनेसे वे असंख्यातगुणित संचित हो जाते हैं, इसलिए उनके प्रमाणके असंख्यातगुणितता बन जाती है। शंका-यहां संयतासंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि तिर्यंचोंका अल्पबहुत्व क्यों नहीं कहा? समाधान--नहीं, क्योंकि, असंख्यात वर्षकी आयुवाले भोगभूमियां तिर्यंचोंमें ही क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंका उपपाद पाया जाता है। अब पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिमतियोंमें सम्यक्त्वके अल्पबहुत्वसम्बन्धी विशेषके प्रतिपादन करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते हैं विशेषता यह है कि पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिमतियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ ५१ ॥ __ यह सूत्र सुगम है। पंचेन्द्रियतियंच योनिमतियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ५२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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