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________________ १, ८, ४८.] अप्पाबहुगाणुगमे तिरिक्ख-अप्पाबहुगपरूवणं तं जहा- चउबिहेसु तिरिक्खेसु भणिस्समाणसव्वसम्माइट्ठिदव्वादो उवसमसम्माइट्ठी थोवा, आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तउवक्कमणकालब्भंतरे संचिदत्तादो । खइयसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १७ ॥ कुदो ? असंखेज्जवस्साउगेसु पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तकालेण संचिदत्तादो, अणाइणिहणसरूवेण उवसमसम्मादिट्ठीहिंतो खइयसम्मादिट्ठीणं आवलियाए असंखेज्जदिभागगुणत्तेण अवट्ठाणादो वा । आवलियाए असंखेज्जदिभागो गुणगारो त्ति कधं णव्वदे ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो । वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥४८॥ कुदो १ दंसणमोहीयक्खएणुप्पण्णखइयसम्मत्ताणं सम्मत्तुप्पत्तीदो पुन्चमेव बद्धतिरिक्खाउआणं पउरं संभवाभावा । ण य लोए सारदव्याणं दुल्लहत्तमप्पसिद्धं, अस्सहत्थि-पत्थरादिसु साराणं लोए दुल्लहत्तुवलंभा । वह इस प्रकार है- चारों प्रकारके तिर्यंचोंमें आगे कहे जानेवाले सर्व सम्यग्दृष्टियोंके द्रव्यप्रमाणसे उपशमसम्यग्दृष्टि जीव अल्प हैं, क्योंकि, आवलीके असंख्यातवें भागमात्र उपक्रमणकालके भीतर उनका संचय होता है। तिर्यंचोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ४७ ॥ . क्योंकि, असंख्यात वर्षकी आयुवाले जीवोंमें पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र कालके द्वारा संचित होनेसे, अथवा अनादिनिधनस्वरूपसे उपशमसम्यग्दृष्टियोंकी अपेक्षा क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंका आवलीके असंख्यातवें भाग गुणितप्रमाणसे अवस्थान पाया जाता है। शंका--यहां आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-आचार्य-परम्परासे आए हुए उपदेशसे जाना जाता है। तिर्यंचोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥४८॥ क्योंकि, जिन्होंने सम्यक्त्वकी उत्पत्तिसे पूर्व ही तिर्यंच आयुका बंध कर लिया है, ऐसे दर्शनमोहनयिके क्षयसे उत्पन्न हुए क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवोंका प्रचुरतासे होना संभव नहीं है। और, लोकमें सार पदार्थोकी दुर्लभता अप्रसिद्ध भी नहीं है, क्योंकि, अश्व, हस्ती और पाषाणादिकोंमें सार पदार्थोंकी सर्वत्र दुर्लभता पाई जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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