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१, ८, ४५.1 अप्पाबहुगाणुगमे तिरिक्ख-अप्पाबहुगपरूवणं [ २६९
चउबिहतिरिक्खसासणसम्मादिट्ठीहिंतो सग-सगसम्मामिच्छादिट्टिणो संखेज्जगुणा । कुदो ? सासणुवक्कमणकालादो सम्मामिच्छादिट्ठीणमुवक्कमणकालस्स तंत-जुत्तीए संखेज्जगुणत्तुवलंभा । को गुणगारो ? संखेज्जसमया।
असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ।। ४४ ॥
चउन्विहतिरिक्खसम्मामिच्छादिट्ठीहितो तेसिं चेव असंजदसम्मादिविणो असंखेजगुणा । कुदो ? सम्मामिच्छत्तमुवक्कमंतजीवेहितो सम्मत्तमुवक्कमंतजीवाणमसंखेजगुणतादो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । तं कुदो णव्वदे ? 'पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेणेत्ति' सुत्तादो, आइरियपरंपरागदुवदेसादो वा ।।
मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा, मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥४५॥ ___ चदुण्हं तिरिक्खाणमसंजदसम्मादिट्ठीहिंतो तेसिं चेव मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा असंखेज्जगुणा य । विप्पडिसिद्धमिदं । जदि अणंतगुणा, कधमसंखेज्जगुणतं ? अह
चारों प्रकारके सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंचों से अपने अपने सम्यग्मिथ्यादृष्टि तिर्यंच संख्यातगुणित हैं, क्योंकि, सासादनंसम्यग्दृष्टियोंके उपक्रमणकालसे सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका उपक्रमणकाल आगम और युक्तिसे संख्यातगुणा पाया जाता है। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है।
उक्त चारों प्रकारके तियचोंमें सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥४४॥
चारों प्रकारके सम्यग्मिथ्यादृष्टि तिर्यंचोंसे उनके ही असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं, क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंसे सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीव असंख्यातगुणित होते हैं । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है।
शंका--यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान--' इन जीवराशियोंके प्रमाणद्वारा अन्तर्मुहूर्त कालसे पल्योपम अपहृत होता है' इस द्रव्यानुयोगद्वारके सूत्रसे और आचार्य परम्परासे आये हुए उपदेशसे जाना जाता है।
उक्त चारों प्रकारके तिर्यचोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं, और मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ४५ ॥
चारों प्रकारके असंयतसम्यग्दृष्टि तिर्यंचोंसे उनके ही मिथ्यादृष्टि तिर्यंच अनन्तगुणित हैं और असंख्यातगुणित भी हैं।
शंका-यह बात तो विप्रतिषिद्ध अर्थात् परस्पर-विरोधी है। यदि अनन्तगुणित हैं, तो वहां असंख्यातगुणत्व नहीं बन सकता है और यदि असंख्यातगुणित हैं, तो
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