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२६८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, ४१. तिरिक्खगदीए तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियपज्जततिरिक्ख-पंचिंदियजोणिणीसु सव्वत्थोवा संजदासंजदा ॥४१॥
पयदचउबिहतिरिक्खेसु जे देसव्वइणो ते तेसिं चेव सेसगुणट्ठाणजीवहिंतो थोवा त्ति चदुण्हमप्पाबहुआणं मूलपदमेदेण परूविदं । किमé देसव्वइणो थोवा ? संजमासंजमुवलंभस्स सुदुल्लहत्तादो ।
सासणसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ४२ ॥
चउव्विहतिरिक्खाणं जे सासणसम्मादिद्विणो ते सग-सगसंजदासंजदेहितो असंखेज्जगुणा, संजमासंजमुवलंभादो सासणगुणलंभस्स सुलहत्तुवलंभा। को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो। तं कधं णव्वदे ? अंतोमुहुत्तसुत्तादो, आइरियपरंपरागदुवदेसादो वा।
सम्मामिच्छादिहिणो संखेज्जगुणा ॥ ४३ ॥
तिर्यचगतिमें तिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियपर्याप्त और पंचेन्द्रिययोनिमती तिर्यच जीवोंमें संयतासंयत सबसे कम हैं ॥४१॥
प्रकृत चारों प्रकारोंके तिर्यंचोंमें जो तिर्यंच देशव्रती हैं, वे अपने ही शेष गुणस्थानवी जीवोंसे थोड़े हैं, इस प्रकार इससे चारों प्रकारके तिर्यंचोंके अल्पबहुत्वका मूलपद प्ररूपण किया गया है।
शंका--देशव्रती अल्प क्यों होते हैं ? समाधान-क्योंकि, संयमासंयमकी प्राप्ति अतिदुर्लभ है।
उक्त चारों प्रकारके तिर्यंचोंमें संयतासंयतोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥४२॥
चारों प्रकारके तिर्यंचोंमें जो सासादनसम्यग्दृष्टि जीव हैं, वे अपने अपने संयतासंयतोंसे असंख्यातगुणित हैं, क्योंकि, संयमासंयम-प्राप्तिकी अपेक्षा सासादन गुणस्थानकी प्राप्ति सुलभ है । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है ।
शंका यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-अन्तर्मुहूर्त अवहारकालके प्रतिपादक सूत्रसे और आचार्य-परम्परासे आये हुए उपदेशसे यह जाना जाता है।
उक्त चारों प्रकारके तिर्यंचोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ४३ ॥
१तिर्यग्गतौ तिरश्चां सर्वतः स्तोकाः संयतासंयताः । स. सि. १,८. २ इतरेषां सामान्यवत् । स. सि.१, ८.
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