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१, ८, ४०. ]
अप्पा बहुगागमे रइय- अप्पा बहुगपरूवणं
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मूलोवट्टिदसेडी मेछपुढविमिच्छादिट्टिणो असंखेज्जगुणा होति । को गुणगारो १ सेडीए असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि सेडीपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? असंखेज्जाणि सेडीवारसम-दसम- अट्टम-छट्ट-तदिय-विदियवग्गमूलाणि । कुदो ? असंजदसम्मादिट्ठिरासिणा गुणदादो |
असंजदसम्मादिट्टिट्टाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ ३९ ॥
सव्वेहि उच्चमाणट्ठाणेहिंतो त्थोवा त्ति सव्वत्थोवा । कुदो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्त उवक्कमणकालेण संचिदत्तादो ।
वेद सम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ४० ॥
एत्थ पुत्रं व तीहि पयारेहि सेचियसरूवेहि गुणयारो परूवेदव्वो । एत्थ खइयसम्मादिट्टिणो ण परूविदा, हेट्टिमछप्पुढवीसु तेसिमुववादाभावा, मणुसगई मुच्चा अण्णत्थ दंसणमोहणीयखवणाभावादो च ।
आठवें, छटवें, तीसरे और दूसरे वर्गमूलसे भाजित जगश्रेणीप्रमाण छह पृथिवियोंके मिथ्यादृष्टि नारकी असंख्यातगुणित होते हैं। गुणकार क्या है ? जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो जगश्रेणके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है । प्रतिभाग क्या है ? जगश्रेणी के बारहवें, दशवे, आठवें, छठवें, तीसरे और दूसरे असंख्यात वर्गमूलप्रमाण प्रतिभाग है, क्योंकि, ये सब असंयतसम्यग्दृष्टिराशिसे गुणित हैं ।
नारकियों में द्वितीयादि छह पृथिवियोंके असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान में उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ ३९ ॥
आगे कहे जानेवाले स्थानोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि थोड़े होते हैं, इसलिये वे सर्वस्तोक कहलाते हैं, क्योंकि, आवलीके असंख्यातवें भागमात्र उपक्रमणकालसे उनका संचय होता है ।
नारकियों में द्वितीयादि छह पृथिवियोंके असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियों से वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ४० ॥
यहां पर पहले के समान सेचिकस्वरूप अर्थात् मापके विशेष भेदस्वरूप तीनों प्रकारोंसे गुणकारका प्ररूपण करना चाहिए ( देखो पृ. २४९ ) । यहां क्षायिकसम्यग्दृष्टिका प्ररूपण नहीं किया है, क्योंकि, नीचेकी छह पृथिवियोंमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियों की उत्पत्ति नहीं होती है, और मनुष्यगतिको छोड़कर अन्य गतियोंमें दर्शनमोहनीयकी क्षपणा नहीं होती है ।
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