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२६६ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
१,८,३७. कालस्स जुत्तीए संखेज्जगुणत्तुवलंभा । को गुणगारो ? संखेज्जा समया ।
असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३७॥
कुदो ? छप्पुढविसम्मामिच्छादिट्ठिउवक्कमणकालेहिंतो छप्पुढविअसंजदसम्मादिहिउवक्कमणकालाणमसंखेजगुणत्तदंसणादो, एगसमएण सम्मामिच्छत्तमुवक्किमंतजीवेहितो एगसमएण वेदयसम्मत्तमुक्क्कमंतजीवाणमसंखेज्जगुणत्तादो वा । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । कधमेदं णव्वदे ? ' एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण कालेणोत्ति' सुत्तादो । असंखेज्जावलियाहि अंतोमुहुत्तत्तं किण्ण विरुज्झदि त्ति उत्ते ण, ओघअसंजदसम्मादिट्ठिअवहारकालं मोत्तूण सेसगुणपडिवण्णाणमवहारकालस्स कज्जे कारणोवयारेण अंतोमुहुत्तसिद्धीदो।
मिच्छादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३८ ॥ छण्हं पुढवीणमसंजदसम्मादिट्ठीहिंतो सेडीवारस-दसम-अट्ठम-छह-तइय-विदियवग्ग
गुणा पाया जाता है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है।
नारकियोंमें दूसरीसे सातवीं पृथिवी तक सभ्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ३७॥
क्योंकि, छह पृथिवियोंसम्बन्धी सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके उपक्रमणकालोसे छह पृथिवीगत असंयतसम्यग्दृष्टियोंका उपक्रमणकाल असंख्यातगुणा देखा जाता है। अथवा, एक समयके द्वारा सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंकी अपेक्षा एक समयके द्वारा वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीव असंख्यातगुणित होते हैं । गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ? ।
समाधान--' इन जीवराशियोंके द्वारा अन्तर्मुहूर्तकालसे पल्योपम अपहृत होता है,' इस द्रव्यानुयोगद्वारके सूत्रसे जाना जाता है।
शंका-अन्तर्मुहूर्तका अर्थ असंख्यात आवलियां लेनेसे उसका अन्तर्मुहूर्तपना विरोधको क्यों नहीं प्राप्त होता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, ओघअसंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अवहारकालको छोड़कर शेष गुणस्थान-प्रतिपन्न जीवोंके अवहारकालका कार्यमें कारणका उपचार कर लेनेसे अन्तर्मुहूर्तपना सिद्ध हो जाता है।
नाराकयोंमें दूसरीसे सातवीं पृथिवी तक असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३८॥
द्वितीयादि छहों पृथिवियोंके असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे जगश्रेणीके वारहवें, दशवें,
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