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२६.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, २६. खवा संखेज्जगुणा ॥ २६ ॥
कुदो ? संखेज्जगुणायादो संचउवलंभा । उवसम-खवगाणमेदमप्पाबहुगं पुवं परूविदमिदि एत्थ ण परूविदव्वं ? ण, पुवमुवसामग-खवगपवेसगाणमप्पाबहुगकथणादो। तदो चेव संचयप्पाबहुगसिद्धीए होदीदि चे सच्चं होदि, जुत्तीदो। जुत्तिवादे अणिउणसत्ताणुग्गह?मेदमप्पाबहुअं पुणो वि परूविदं । खवगसेडीए सम्मत्तप्पाबहुअं किण्ण परूविदं ? ण, तेसिं खइयसम्मत्तं मोत्तूण अण्णसम्मत्ताभावा । तं कुदो णव्यदे ? खवगेसु उवसम-वेदगसम्मादिविदव्वादिपरूवयसुत्ताणुवलंभा । उवसमा खवा त्ति सद्दा उवसमसम्मत्त-खइयसम्मत्ताणं वाचया ण होति त्ति भणताणमभिप्पाएण खइयसम्मत्तस्स
अपूर्वकरण आदि तीन गुणस्थानवर्ती उपशामकोंसे तीनों गुणस्थानवर्ती क्षपक जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २६॥
क्योंकि, संख्यातगुणित आयसे क्षपकोंका संचय पाया जाता है।
शंका–उपशामक और क्षपकोंका यह अल्पबहुत्व पहले कह आये हैं, इसलिये यहां नहीं कहना चाहिये ?
समाधान नहीं, क्योंकि, पहले उपशामक और क्षपक जीवोंके प्रवेशकी अपेक्षा अल्पबहुत्व कहा है।
शंका-उसीसे संचयके अल्पबहुत्वकी सिद्धि हो जायगी (फिर उसे पृथक् क्यों कहा)?
समाधान यह सत्य है कि युक्तिसे अल्पबहुत्वकी सिद्धि हो सकती है। किन्तु जो शिष्य युक्तिवादमें निपुण नहीं हैं, उनके अनुग्रहके लिये यह अल्पबहुत्व पुनः भी कहा है।
शंका-क्षपकश्रेणीमें सम्यक्त्वका अल्पबहुत्व क्यों नहीं कहा?
समाधान-नहीं, क्योंकि, क्षपकश्रेणीवालोंके क्षायिकसम्यक्त्वको छोड़कर अन्य सम्यक्त्व नहीं पाया जाता है।
शंका-यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान-क्योंकि, क्षपकश्रेणीवाले जीवोंमें उपशमसम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके द्रव्य अर्थात् संख्या और आदि पदसे क्षेत्र, स्पर्शन आदिके प्ररूपक सूत्र नहीं पाये जाते हैं। उपशामक और क्षपक, ये दोनों शब्द क्रमशः उपशमसम्यक्त्व और क्षायिकसम्यक्त्वके वाचक नहीं हैं, ऐसा कथन करनेवाले आचार्योंके अभिप्रायसे
१ प्रतिषु · अणिऊणसंतागुग्गहठ्ठ-' इति पाठः।
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