________________
१, ८, २८.] अप्पाबहुगाणुगमे णेरइय-अप्पाबहुगपरूवणं
[२६१ अप्पाबहुवपरूवयाणि, पुव्वमपरूविदखवगुवसामगसंचयस्स अप्पाबहुवपरूवयाणि वा दो वि सुत्ताणि त्ति घेत्तव्यं ।
एवं ओघपरूवणा समत्ता। __ आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु सव्वत्थोवा सासणसम्मादिट्ठीं ॥ २७ ॥
___ आदेसवयणं ओघपडिसेहफलं । सेसमग्गणादिपडिसेहटुं गदियाणुवादवयणं । सेसगदिपडिसेहणट्ठो णिरयगदिणिदेसो । सेसगुणहाणपडिसेहट्ठो सासणणिद्देसो । उवरि उच्चमाणगुणट्ठाणदव्वेहिंतो सासणा दव्वपमाणेण थोवा अप्पा इदि उत्तं होदि ।
सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥२८॥
कुदो ? सासणुवक्कमणकालादो सम्मामिच्छादिट्ठिउवक्कमणकालस्स संखेज्जगुणस्स उवलंभा । को गुणगारो ? संखेज्जसमया। हेट्ठिमरासिणा उवरिमरासिम्हि भागे
ये दोनों सूत्र क्षायिकसम्यक्त्वके अल्पबहुत्वके प्ररूपक हैं, तथा पहले नहीं प्ररूपण किये गये क्षपक और उपशामकसम्बन्धी संचयके अल्पबहुत्वके प्ररूपक हैं, ऐसा अर्थ ग्रहण करना चाहिए।
इस प्रकार ओघप्ररूपणा समाप्त हुई। आदेशकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें नारकियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥२७॥
सूत्रमें 'आदेश' यह वचन ओघका प्रतिषेध करनेके लिए है। शेष मार्गणा आदिके प्रतिषेध करनेके लिए 'गतिमार्गणाके अनुवादसे' यह वचन कहा है। शेष गतियोंके प्रतिषेधके लिए 'नरकगति' इस पदका निर्देश किया। शेष गुणस्थानोंके प्रतिषेधार्थ 'सासादन' इस पदका निर्देश किया। ऊपर कहे जानेवाले शेष गुणस्थानोंके द्रव्यप्रमाणोंकी अपेक्षा सासादनसम्यग्दृष्टि जीव द्रव्यप्रमाणसे स्तोक अर्थात् अल्प होते हैं, यह अर्थ कहा गया है।
नारकियोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्या दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २८॥
क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टियोंके उष्क्रमणकालसे सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका उपक्रमणकाल संख्यातगुणा पाया जाता है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। अधस्तनराशिका उपरिमराशियोंमें भाग देने पर गुणकारका प्रमाण आता है । अधस्तन
१ विशेषेण गत्यनुवादेन नरकगतौ सर्वासु प्रथिवीसु सर्वतः स्तोकाः सासादनसम्यग्दृष्टयः। स.सि. १,८. २ सम्यग्मिध्यादृष्टयः संख्येयगुणाः। स. सि. १,८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org