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________________ २५८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, ८, २१. पमत्तापमत्तसंजदट्टाणे सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी ॥ २१ ॥ कुदो ? अंतोमुहुत्तद्धासंचयादो, उवसमसम्मत्तेण सह पाएण संजमं पडिवज्जताणमभावादो च। खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २२ ॥ अंतोमुहुत्तेण संचिदउवसमसम्मादिट्ठीहिंतो देसूणपुव्वकोडीसंचिदखइयसम्मादिट्ठीणं संखेजगुणत्तं पडि विरोहाभावा । को गुणगारो ? संखेज्जा समया । वेदगसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ २३ ॥ कुदो ? खइयादो खओवसमियस्स सम्मत्तस्स पाएण संभवा । को गुणगारो ? संखेज्जा समया। एवं तिसु वि अद्धासु ॥ २४ ॥ जधा पमत्तापमत्तसंजदाणं सम्मत्तप्पाबहुअं परूविदं, तहा तिसु उवसामगद्धासु परूवेदव्वं । तं जहा- सव्वत्थोवा उवसमसम्मादिट्ठी। खइयसम्मादिट्ठी संखेज्जगुणा । प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टि जीव सबसे कम हैं ॥ २१॥ क्योंकि, एक तो उपशमसम्यग्दृष्टियोंके संचयका काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है, और दूसरे उपशमसम्यक्त्वके साथ बहुलतासे संयमको प्राप्त होनेवाले जीवोंका अभाव है। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २२ ॥ __ अन्तर्मुहूर्तसे संचित होनेवाले उपशमसम्यग्दृष्टियोंकी अपेक्षा कुछ कम पूर्वकोटि कालसे संचित होनेवाले क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके संख्यातगुणित होनेमें कोई विरोध नहीं है। गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥ २३ ॥ क्योंकि, क्षायिकसम्यक्त्वकी अपेक्षा क्षायोपशमिकसम्यक्त्वका होना अधिकतासे सम्भव है । गुणकार क्या है ? संख्यात समय गुणकार है। इसी प्रकार अपूर्वकरण आदि तीन उपशामक गुणस्थानोंमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व है ॥ २४ ॥ जिस प्रकार प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंके सम्यक्त्वका अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार आदिके तीन उपशामक गुणस्थानोंमें भी प्ररूपण करना चाहिए। वह इस प्रकार है-तीनों उपशामक गुणस्थानों में उपशमसम्यग्दृष्टि जीप सबसे कम है। उनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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