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१, ८, २०.] अप्पाबहुगाणुगमे ओघ-अप्पाबहुगपरूवणं
[२५७ मणुसपज्जत्ते मोत्तूण अण्णत्थाभावा । अदो चेय भणिस्समाणासंखेज्जरासीहितो थोवा ।
उवसमसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १९॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । को पडिभागो ? खइयसम्मादिट्ठिसंजदासंजदमेत्तसंखेजरूवपडिभागो। कुदो? असंखेज्जावलियाहि पलिदोवमे खंडिदे तत्थ एयखंडमेत्ताणमुवसमसम्मत्तेण सह संजदासंजदाणमुवलंभा ।
वेदगसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ २० ॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । एसो उवसमसम्मादिट्ठिउक्कस्ससंचयादो वेदगसम्मादिट्ठिउक्कस्ससंचयस्स सांतरस्स' गुणगारो, अण्णहा पुण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो गुणगारो, उवसमसम्मादिहिरासिस्स सांतरस्स कयाइ एगजीवस्स वि उवलंभा । वेदगसम्मादिहिरासी पुण सव्वकालं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो चेय, णिरंतरस्स समाणायव्वयस्स अण्णरूवावत्तिविरोहा । पर्याप्त मनुष्योंको छोड़कर दूसरी गतिमें नहीं पाया जाता है। और इसीलिये संयतासंयत क्षायिकसम्यग्दृष्टि आगे कही जानेवाली असंख्यात राशियोंसे कम होते हैं।
संयतासंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंसे उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयत असंख्यातगुणित हैं ॥ १९॥
गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। प्रतिभाग क्या है ? क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंकी जितनी संख्या है तत्प्रमाण संख्यातरूप प्रतिभाग है, क्योंकि, असंख्यात आवलियोंसे पल्योपमके खंडित करने पर उनमेंसे एक खंड मात्र उपशमसम्यक्त्वके साथ संयतासंयत जीव पाये जाते हैं।
___ संयतासंयत गुणस्थानमें उपशमसम्यग्दृष्टियोंसे वेदकसम्यग्दृष्टि असंख्यातगुणित हैं ॥ २०॥
गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है । उपशमसम्यग्दृष्टियोंके उत्कृष्ट संचयसे वेदकसम्यग्दृष्टियोंके उत्कृष्ट सान्तर संचयका यह गुणकार है। अन्यथा पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार होता है, क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टिराशि सान्तर है, इसलिए कदाचित् एक जीवकी भी उपलब्धि होती है। परंतु वेदकसम्यग्दृष्टिराशि सर्वकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र ही रहती है, क्योंकि, जिस राशिका आय और व्यय समान है और जो अन्तर-रहित है, उसको अन्यरूप मानने में विरोध आता है।
१ 'सौतरस्स' इति पाठः केवलं म १ प्रतौ अस्ति, अन्यप्रतिषु नास्ति ।
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