________________
२५२) छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, १४. जधा- 'एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण कालेणेत्ति' दवाणिओगद्दारसुत्तादो णव्वदि जधा पलिदोवममंतोमुहुत्तेण खंडिदेयखंडमेत्ता सम्मामिच्छादिद्विणो होति त्ति । पुणो एवं रासिं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिदे असंखेज्जपलिदोवममेत्तो' असंजदसम्मादिहिरासी होदि । ण चेदं, एदेहि पलिदोवममवहिरदि अंतोमुहुत्तेण कालेणेत्ति एदेण सुत्तेण सह विरोहा । कधं पुण आवलियाए असंखेज्जदिभागगुणगारस्स सिद्धी ? उच्चदे- सम्मामिच्छादिडिअद्धादो तप्पाओग्गअसंखेज्जगुणद्धाए संचिदो असंजदसम्मादिहिरासी घेत्तव्यो, एदिस्से अद्धाए सम्मामिच्छादिट्ठिउवक्कमणकालादो असंखेज्जगुणउवक्कमणकालुवलंभा । एत्थ संचिद-असंजदसम्मादिहिरासीए वि आवलियाए असंखेज्जदिभागेण गुणिदमेत्तो होदि । अधवा दोण्हं उवक्कमणकाला जदि वि सरिसा होति त्ति तो वि सम्मामिच्छादिट्ठीहिंतो असंजदसम्मादिट्ठी आवलियाए संखेज्जभागगुणा । कुदो ? सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जमाणरासीदो सम्मत्तं पडिवज्जमाणरासिस्स आवलियाए असंखेज्जदिभागगुणत्तादो।
मिच्छादिट्ठी अणंतगुणा ॥ १४ ॥
उसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है- इन सासादनसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्तकालसे पल्योपम अपहृत होता है, इस द्रव्यानुयोगद्वारके सूत्रसे जाना जाता है कि पल्योपमको अन्तर्मुहूर्तसे खंडित करने पर एक खंडप्रमाण सम्यग्मिथ्यादृष्टि होते हैं। पुनः इस राशिको पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित करने पर असंख्यात पल्योपमप्रमाण असंयतसम्यग्दृष्टिराशि होती है। परंतु यह ठीक नहीं है, क्योंकि, 'इन गुणस्थानवी जीवोंकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्तकालसे पल्योपम अपहृत होता है' इस सूत्रके साथ पूर्वोक्त कथनका विरोध आता है।
शंका-फिर आवलोके असंख्यातवें भागरूप गुणकारकी सिद्धि कैसे होती है ?
समाधान--सम्यग्मिथ्यादृष्टिके कालसे उसके योग्य असंख्यातगुणित कालसे संचित असंयतसम्यग्दृष्टि राशि ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, इस कालका सम्याग्मथ्याहाष्टिके उपक्रमणकालसे असंख्यातगुणा उपक्रमणकाल पाया जाता है । यहां पर संचित असंयतसम्यग्दृष्टि राशि भी आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र है। अथवा, दोनोंके उपक्रमणकाल यद्यपि सदृश होते हैं, तो भी सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंसे असंयतसम्यदृष्टि जीव आवलीके संख्यात भागगुणित हैं, क्योंकि, सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाली राशिसे सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाली राशि आवलीके असंख्यातवें भागगुणित है।
असंयतसम्यग्दृष्टियोंसे मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणित हैं ॥१४॥ १ दव्वाणु. ६. (मा. ३ पृ. ६३.) २ अ-कप्रत्योः ' -पलिदोवमेचो' इति पाठः। ३ मिण्यारण्योऽनन्तगुणाः । स. सि. १,८. प्रतिषु 'अणंतगुणो' इति पारः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org