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१, ८, १३. ]
बहुगागमे ओघ - अप्पा बहुगपरूवणं
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तो एस ण्णाओ वोत्तुं' जुत्तो । किंतु वेदगसम्मादिट्ठिणो मिच्छत्तं सम्मामिच्छत्तं च पडिवज्जंति, सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जमाणेहिंतो मिच्छत्तं पडिवज्जमाणवेदग सम्मादिट्टिण असंखेज्जगुणा, तेण पुव्वत्तं ण घडदे इदि । ण चासंखेज्जगुणरासिवओ अण्णरासिम - क्खयं होदि, तस्स अप्पणो आयाणुसरणसहावत्तादो । एदमेवं चेव होदि ति कथं णव्वदे ? सासणेहिंतो सम्मामिच्छादिट्टिणो संखेज्जगुणा त्ति सुत्तण्णहाणुववत्तीदो णव्वदे ।
असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ १३ ॥
at गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । सम्मामिच्छादिट्ठिरासी अंतोमुहुत्त संचिदो, असंजदसम्मादिट्ठिरासी पुण वेसागरोवमसंचिदो । सम्मामिच्छादिडिअद्धादो वेसागरोवमकालो पलिदोवमासंखेज्जदिभागगुणो । सम्मामिच्छादिट्टिउवक्कमणकालादो वि असंजदसम्मादिट्टिउवक्कमणकालो पलिदोवमस्स संखेज्जदिभागगुणो, उवक्कमणकालस्स अद्धाणुसारित्तदंसणादो | तेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणगारेण होदव्यमिदि ? ण, असंजदसम्मादिङ्किरासिस्स असंखेज्जपलिदोवमप्पमाणप्पसंगा । तं जानेवाला गुणस्थान एक ही हो, तो यह न्याय कहने योग्य है । किन्तु वेदकसम्यग्दृष्टि, मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनों गुणस्थानोंको प्राप्त होते हैं । तथा सम्यमिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले वेदकसम्यग्दृष्टियों से मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं, इसलिए पूर्वोक्त कथन घटित नहीं होता है । दूसरी बात यह है कि असंख्यातगुणी राशिका व्यय अन्य राशिकी अपेक्षासे नहीं होता है, क्योंकि, वह अपने आयके अनुसार व्ययशील स्वभाववाला होता है ।
शंका- यह इसी प्रकार होता है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - सासादन सम्यग्दृष्टियों से सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित होते हैं, यह सूत्र अन्यथा बन नहीं सकता है, इस अन्यथानुपपत्तिसे जाना जाता है कि सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित होते हैं ।
सम्यग्मिथ्यादृष्टियों से असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ १३ ॥ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है ।
शंका - - सम्यग्मिथ्यादृष्टि राशि अन्तर्मुहूर्त - संचित है और असंयतसम्यग्दृष्टि राशि दो सागरोपम-संचित है। सम्यग्मिथ्यादृष्टिके कालसे दो सागरोपमकाल पल्योपमके असंख्यातवें भाग गुणितप्रमाण है । सम्यग्मिथ्यादृष्टिके उपक्रमणकालसे भी असंयतसम्यग्दृष्टिका उपक्रमणकाल पल्योपमके संख्यातवें भागगुणित है, क्योंकि, उपक्रमणकाल गुणस्थानकालके अनुसार देखा जाता है । इसलिए पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार होना चाहिए ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, गुणकारको पल्योपमके असंख्यातवें भाग मानने पर असंयतसम्यग्दृष्टि राशिको असंख्यात पत्योपमप्रमाण होनेका प्रसंग प्राप्त होगा ।
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१ प्रतिषु ' जोतुं ' इति पाठः ।
२ असंयत सम्यग्दृष्टोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. ३ म २ प्रतौ ' -दो वि असंजदसम्मादिट्ठि उवकमणकालो ' इति पाठो नास्ति ।
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