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२५० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, १२. सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा ॥ १२॥
एदस्सत्थो उच्चदे- सम्मामिच्छादिट्ठिअद्धा अंतोमुहुत्तमेत्ता, सासणसम्मादिट्ठिअद्धा वि छावलियमेत्ता । किंतु सासणसम्मादिट्ठिअद्धादो सम्मामिच्छाइटिअद्धा संखेज्जगुणा । संखेज्जगुणद्धाए उवक्कमणकालो वि सासणद्धावक्कमणकालादो संखेज्जगुणो उवक्कमणविरोहा विरहकालाणमुहयत्थ साधम्मादो । तेण दोगुणहाणाणि पडिवज्जमाणरासी जदि वि सरिसो, तो वि सासणसम्मादिट्ठीहितो सम्मामिच्छादिट्ठी संखेज्जगुणा होति । किंतु सासणगुणमुवसमसम्मादिट्ठिणो चेय पडिवज्जंति, सम्मामिच्छत्तगुणं पुण वेदगुवसमसम्मादिविणो अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छादिट्ठिणो य पडिवज्जंति । तेण सासणं पडिवज्जमाणरासीदो सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जमाणरासी संखेज्जगुणो। तदो संखेज्जगुणायादो संखेज्जगुणउवक्कमणकालादो च सासणेहिंतो सम्मामिच्छादिट्ठिणो संखेज्जगुणा, उवसमसम्मादिट्ठीहिंतो वेदगसम्मादिट्टिणो असंखेज्जगुणा, 'कारणाणुसारिणा कज्जेण होदव्वमिदि' णायादो। सासणेहिंतो सम्मामिच्छादिट्टिणो असंखेज्जगुणा किण्ण होति त्ति उत्ते ण होति, अणेयणिग्गमादो । जदि तेहि पडिवज्जमाणगुणट्ठाणमेक्कं चेव होदि,
सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित हैं ॥१२॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानका काल अन्तर्मुहूर्तमात्र है और सासादनसम्यग्दृष्टिका काल भी छह आवलीप्रमाण है, किन्तु फिर भी सासादनसम्यग्दृष्टिके कालसे सम्यग्मिथ्यादृष्टिका काल संख्यातगुणा है। संख्यातगुणित कालका उपक्रमणकाल भी सासादनके कालके उपक्रमणकालसे संख्यातगुणा है। अन्यथा उपक्रमणकालमें विरोध आजायगा, क्योंकि, विरहकाल दोनों जगह समान है । इसलिए इन दोनों गुणस्थानोंको प्राप्त होनेवाली राशि यद्यपि समान है तो भी सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातगुणित हैं। किन्तु सासादन गुणस्थानको उपशमसम्यग्दृष्टि ही प्राप्त होते हैं, परन्तु सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशमसम्यग्दृष्टि और मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टि जीव भी प्राप्त होते हैं। इसलिये सासादनगुणस्थानको प्राप्त होनेवाली राशिसे सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाली राशि संख्यातगुणी है । अतः संख्यातगुणी आय होनेसे और संख्यातगुणा उपक्रमणकाल होनेसे सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव संख्यातगुणित होते हैं। उपशमसम्यग्दृष्टियोसे वेदकसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगणित हैं. क्योंकि. 'कारणके अनुसार कार्य होता है' ऐसा न्याय है।सासादनसम्यग्दृष्टियोंसे सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंख्यातगुणित क्यों नहीं होते हैं, ऐसा पूछने पर आचार्य उत्तर देते हैं कि नहीं होते हैं, क्योंकि, निर्गमके अर्थात् जानेके मार्ग अनेक हैं। यदि वेदकसम्यग्दृष्टियोंके द्वारा प्राप्त किया
१ सम्यग्मिथ्यादृष्टयः संख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. २ प्रतिषु 'पडिमाणरासीदो' इति पाठः। ३ प्रतिषु । मेतं' इति पाठः।
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