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________________ १, ८, ११.] अप्पाबहुगाणुगमे ओघ-अप्पाबहुगपरूवणं [ २४९ कुदो ? तिविहसम्मत्तट्ठिदसंजदासंजदेहिंतो एगुवसमसम्मत्तादो सासणगुणं पडिवज्जिय छसु आवलियासु संचिदजीवाणमसंखेज्जगुणत्तुवदेसादो । तं पि कधं णव्वदे ? एगसमयम्हि संजमासंजमं पडिवज्जमाणजीवेहिंतो एक्कसमयम्हि चेव सासणगुणं पडिवज्जमाणजीवाणमसंखेज्जगुणत्तदंसणादो । तं पि' कुदो ? अणंतसंसारविच्छेयहेउसंजमासंजमलंभस्स अइदुल्लभत्तादो । को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागो । हेडिमरासिणा उवरिमरासिम्हि भागे हिदे गुणगारो आगच्छदि, उवरिमरासिअवहारकालेण हेट्ठिमरासिअवहारकाले भागे हिदे गुणगारो होदि, उवरिमरासिअवहारकालगुणिदहेट्ठिमरासिणा पलिदोवमे भागे हिदे गुणगारो होदि । एवं तीहि पयारेहि गुणयारो समाणभज्जमाणरासीसु सव्वत्थ साहेदव्यो । णवरि हेट्ठिमरासिणा उवरिमरासिम्हि भागे हिदे गुणगारो आगच्छदि त्ति एवं समाणासमाणभज्जमाणरासीणं साहारणं, दोसु वि एदस्स पउत्तीए बाहाणुवलंभा। क्योंकि, तीन प्रकारके सम्यक्त्वके साथ स्थित संयतासंयतोंकी अपेक्षा एक उपशमसम्यक्त्वसे सासादनगुणस्थानको प्राप्त होकर छह आवलियोंसे संचित जीव असंख्यातगुणित हैं, ऐसा उपदेश पाया जाता है। शंका-यह भी कैसे जाना जाता है ? समाधान-एक समयमें संयमासंयमको प्राप्त होनेवाले जीवोंसे एक समयमें ही सासादनगुणस्थानको प्राप्त होनेवाले जीव असंख्यातगुणित देखे जाते हैं। शंका-इसका भी कारण क्या है ? समाधान-क्योंकि, अनन्त संसारके विच्छेदका कारणभूत संयमासंयमका पाना अतिदुर्लभ है। ___ गुणकार क्या है ? आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। अधस्तनराशिसे उपरिमराशिमें भाग देनेपर गुणकारका प्रमाण आता है । अथवा, उपरिमराशिके अवहारकालसे अधस्तनराशिके अवहारकालमें भाग देनेपर गुणकार होता है। अथवा, उपरिमराशिके अवहारकालसे अधस्तनराशिको गुणित करके जो लब्ध आवे उसका पल्योपममें . भाग देनेपर गुणकार आता है। ऐसे इन तीन प्रकारोंसे समान भज्यमान राशियों में सर्वत्र गुणकार साधित कर लेना चाहिए। केवल विशेषता यह है कि अधस्तनराशिका उपरिमराशिमें भाग देनेपर गुणकार आता है, यह नियम समान और असमान, दोनों भज्यमान राशियोंमें साधारण है, क्योंकि, उक्त दोनों राशियों में भी इस नियमकी प्रवृत्ति होने में बाधा नहीं पाई जाती है। १ प्रतिषु तं हि' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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