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१, ८, ९.] अप्पाबहुगाणुगमे ओघ-अप्पाबहुगपरूवणं
[२१७ सजोगिकेवली अद्धं पडुच्च संखेज्जगुणा ॥७॥
कुदो ? दुरूवूणछस्सदमेत्तजीहितो अट्ठलक्ख-अट्ठाणउदिसहस्स-दुरहियपंचसदमेत्तजीवाणं संखेजगुणत्तुवलंभा। हेट्ठिमरासिणा उवरिमरासि छेत्तूण गुणयारो उप्पादेदव्यो।
अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥८॥
खवगुवसामगअप्पमत्तसंजदपडिसेहो किमहूँ कीरदे ? ण, अप्पमत्तसामण्णेण तेसिं पि गहणप्पसंगा । सजोगिरासिणा बेकोडि-छण्णउदिलक्ख-णवणउइसहस्स-तिउत्तरसदमेत्तअप्पमत्तरासिम्हि भागे हिदे जं लद्धं सो गुणगारो होदि।
पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥९॥ को गुणगारो ? दोण्णि रूवाणि । कुदो णबदे ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो । सयोगिकेवली कालकी अपेक्षा संख्यातगुणित हैं ॥७॥
क्योंकि, दो कम छह सौ, अर्थात् पांच सौ अट्ठानवे मात्र जीवोंकी अपेक्षा आठ लाख, अट्ठानवे हजार पांच सौ दो संख्याप्रमाण जीवोंके संख्यातगुणितता पाई जाती है । यहां पर अधस्तनराशिसे उपरिम राशिको छेदकर (भाग देकर) गुणकार उत्पन्न करना चाहिए।
सयोगिकेवलियोंसे अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥ ८॥
शंका-यहांपर क्षपक और उपशामक अप्रमत्तसंयतोंका निषेध किस लिए किया गया है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, 'अप्रमत्त' इस सामान्य पदसे उनके भी ग्रहणका प्रसंग आता है, इसलिए क्षपक और उपशामक अप्रमत्तसंयतोंका निषेध किया गया है। सयोगिकेवलीकी राशिसे दो करोड़ छयानवे लाख निन्यानवे हजार एक सौ तीन संख्याप्रमाण अप्रमत्तसंयतोंकी राशिमें भाग देनेपर जो लब्ध आवे, वह यहां पर गुणकार होता है।
अप्रमत्तसंयतोंसे प्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ॥ ९ ॥ गुणकार क्या है ? दो संख्या गुणकार है। शंका-यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-आचार्य परम्पराके द्वारा आये हुये उपदेशसे जाना जाता है । १ सयोगकेवलिनः स्वकालेन समुदिताः संख्येयगुणाः। (८९८५०२)। स. सि. १,८. २ अप्रमत्तसंयताः संख्येयगुणाः (२९६९९१०३)। स. सि. १,८.. ३ प्रमचसंयताः संख्येयगुणाः (५९३९८२०६) । स. सि. १, ८.
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