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२१६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ८, ५. मुक्कस्सेण पविस्समाणअद्रुत्तरसदजीवाणं दुगुणत्तुवलंभा, पंचूण-चदुरुत्तरतिसदमेत्तेगुवसामगगुणट्ठाणुक्कस्ससंचयादो वि खवगेगगुणट्ठाणुक्कस्ससंचयस्स दुरूऊणछस्सदमेत्तस्स दुगुणत्तदंसणादो।
खीणकसायवीदरागछदुमत्था तत्तिया चेव ॥५॥ पुधसुत्तारंभस्स कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । सेसं सुगम ।
सजोगकेवली अजोगकेवली पवेसणेण दो वि तुल्ला तत्तिया चेव ॥६॥
घाइयघादिकम्माणं छदुमत्थेहि पच्चासत्तीए अभावादो पुधसत्तारंभो जादो । पवेसणेण तेत्तिया चेवेत्ति उत्ते पवेस-संचएहि अद्वत्तरसददुरूऊणछस्सदमेत्ता कमेण होति त्ति घेत्तव्यं । दो वि तुल्ला ति उत्ते दो वि अण्णोण्णेण सरिसा त्ति भणिदं होदि । अजोगिकेवलिसंचओ पुबिल्लगुणट्ठाणसंचएहि सरिसो जधा, तधा सजोगिकेवलिसंचयस्स वि सरिसत्ती । विसरिसत्तपदुप्पायणट्टमुत्तरसुत्तं भणदिअपेक्षा क्षपकके एक गुणस्थानमें उत्कर्षसे प्रवेश करनेवाले एकसौ आठ जीवोंके दुगुणता पाई जाती है। तथा संचयकी अपेक्षा उपशामकके एक गुणस्थानमें उत्कृष्टरूपसे पांच कम तीनसौ चार अर्थात् दो सौ निन्यानवे (२९९) संचयसे भी क्षपकके एक गुणस्थानको दो कम छह सौ (५९८) रूप संचयके दुगुणता देखी जाती है।
क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं ॥५॥ पृथक् सूत्र बनानेका कारण पहलेके समान कहना चाहिए । शेष सूत्रार्थ सुगम है।
सयोगिकेवली और अयोगिकेवली प्रवेशकी अपेक्षा दोनों ही तुल्य और पूर्वोक्त प्रमाण हैं ॥६॥
घाति-कर्मीका घात करनेवाले सयोगिकेवली और अयोगिकेवलीकी छद्मस्थ जीवोंके साथ प्रत्यासत्तिका अभाव होनेसे पृथक् सूत्र बनाया गया है। प्रवेशकी अपेक्षा पूर्वोक्त प्रमाण ही हैं, ऐसा कहनेपर प्रवेशसे एक सौ आठ (१०८) और संचयसे दो कम छह सौ अर्थात् पांच सौ अट्रानवे (५९८) क्रमसे होते हैं, ऐसा अर्थ ग्रहण करना चाहिए । दोनों ही तुल्य हैं, ऐसा कहनेसे दोनों ही परस्पर समान है, ऐसा अर्थ सूचित होता है। जिस प्रकार अयोगिकेवलीका संचय पूर्व गुणस्थानोंके संचयके सदृश होता है, उसी प्रकार सयोगिकेवलीके संचयके भी सदृशताकी प्राप्ति होती है, अतएव उनके संचयकी विसदृशताके प्रतिपादन करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते हैं
१ क्षीणकषायवीतरागच्छमस्थास्तावन्त एव । स. सि. १,८. १सयोगकेबलिनोऽयोगकेबलिनश्च प्रवेशेन तुल्यसंख्याः । स.ति. १,८.
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