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छक्खडागमे जीवद्वाणं
ओदइएण भावेण पुणो असंजदों ॥ ८१ ॥
दो वि सुत्ताणि सुगमाणि ।
संजदासंजद- पमत्त अप्पमत्तसंजदा त्ति को भावो, खओवसमिओ
भावो ॥ ८२ ॥ सुगममेदं । उवसमियं सम्मत्तं ॥ ८३ ॥
एदं पि सुगमं ।
चदुण्हमुवसमा त्ति को भावो, उवसमिओ भावों ॥ ८४ ॥ उवसमियं सम्मत्तं ॥ ८५ ॥
दो वि सुत्ताणि सुगमाणि । सास सम्मादिट्ठी ओघं ॥ ८६ ॥
किन्तु उपशमसम्यक्त्व असंयतसम्यग्दृष्टि जीवका असंयतत्व औदयिक भावसे है ॥ ८१ ॥
[ १, ७, ८१.
ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं ।
उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत यह कौनसा भाव है ? क्षायोपशमिक भाव है ।। ८२ ।।
यह सूत्र सुगम है ।
उक्त जीवोंके सम्यग्दर्शन औपशमिक होता है ॥ ८३ ॥
यह सूत्र भी सुगम है ।
अपूर्वकरण आदि चार गुणस्थानोंके उपशमसम्यग्दृष्टि उपशामक यह कौनसा भाव है ? औपशमिक भाव है ॥ ८४ ॥
उक्त जीवोंके सम्यग्दर्शन औपशमिक होता है ॥ ८५ ॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं ।
सासादनसम्यग्दृष्टि भाव ओघके समान है ॥ ८६ ॥
१ असंयतः पुनरौदयिकेन भावेन । स. सि. १, ८.
२ संयतासंयत प्रमत्ताप्रमत्तसंयतानां क्षायोपशमिको भावः । स. सि. १, ८.
३ औपशमिकं सम्यक्त्वम् । स. सि. १, ८.
४ चतुर्णामुपशमकानामौपशमिको भावः । स. सि. १, ८.
५ औपशमिकं सम्यक्त्वम् । स. सि. १,८. ६ सासादनसम्यग्दृष्टेः पारिणामिको भावः । स. सि. १, ८.
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