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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ७, ७३.
कुदो ! मोहणीयस्स खवणहेदुअपुव्वसण्णिदचारित्तसमण्णिदत्तादो मोहक्खएणुप्पण्णचारितादो घादिक्खएणुप्पण्णणवकेवललद्धीहिंतो ।
खइयं सम्मतं ॥ ७३ ॥
सुगममेदं । वेदयसम्मादिट्टी समिओ भावो ॥ ७४ ॥ सुगममेदं ।
असंजदसम्मादिट्टि त्ति को भावो, खओव
खओवसमियं सम्मत्तं ॥ ७५ ॥
ओम्म असजद सम्मादिट्ठिस्स तिष्णि भावा सामण्णेण परूविदा, एदं सम्मत्तमोसमयं खइयं खओवसमियं वेत्ति ण परूविदं । संपहि सम्मत्तमग्गणाए एदं सम्मत्तमोवसमियं खइयं खओवसमियं वेत्ति देहि सुत्तेहि जाणाविदं । सेसं सुगमं ।
क्योंकि, अपूर्वकरण आदि तीन क्षपकोंका मोहनीयकर्मके क्षपणके कारणभूत अपूर्वसंज्ञावाले चारित्रसे समन्वित होनेके कारण, क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थके मोहक्षयसे उत्पन्न हुआ चारित्र होनेके कारण, तथा सयोगिकेवली और अयोगिकेवलीके घातिया कर्मोंका क्षय हो जानेसे उत्पन्न नव केवललब्धियोंकी अपेक्षा क्षायिक भाव पाया जाता है। चारों क्षपक, सयोगिकेवली और अयोगिकेवली के सम्यग्दर्शन क्षायिक ही होता है ॥ ७३ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
वेदकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौनसा भाव है ? क्षायोपशमिक भाव है ॥ ७४ ॥
यह सूत्र सुगम है ।
वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंके सम्यग्दर्शन क्षायोपशमिक होता है ।। ७५ ।।
ओघप्ररूपणामें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके सामान्यसे तीन भाव कहे हैं; किन्तु उनका यह सम्यग्दर्शन औपशमिक है, या क्षायिक है, किंवा क्षायोपशमिक है, यह प्ररूपण नहीं किया है । अब सम्यक्त्वमार्गणामें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका यह सम्यग्दर्शन औपशमिकसम्यक्त्वियोंके औपशमिक होता है, क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके क्षायिक होता है और वेदकसम्यग्दृष्टियोंके क्षायोपशमिक होता है, यह बात इन सूत्रोंसे सूचित की गई है । शेष सूत्रार्थ सुगम है ।
१ क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टिषु असंयतसम्यग्दृष्टेः क्षायोपशमिको भावः । स. सि. १,८० २ क्षायोपशमिकं सम्यक्त्वम् । स. सि. १, ८.
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