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१, ७, ४८.] भावाणुगमे पंचणाणिभाव-पख्वणं
[२२५ दोहिं मि अक्कमेण अणुविद्धस्स संजदासजदो व्व पत्तजच्चतरस्स गाणेसु अण्णाणेसु वा अत्थित्तविरोहा । सेसं सुगमं ।
आभिणिबोहिय-सुद-ओधिणाणीसु असंजदसम्मादिट्टिप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था ओघं ॥४६॥
सुगममेदं, ओघादो भावं पडि भेदाभावा ।
मणपज्जवणाणीसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था ओघं ॥ ४७ ॥
एदं पि सुगमं । केवलणाणीसु सजोगिकेवली ओघं ॥४८॥
कुदो ? खइयभावं पडि भेदाभावा। सजोगो त्ति को भावो? अणादिपारिणामिओ भावो । णोवसमिओ, मोहणीए अणुवसते वि जोगुवलंभा। ण खइओ, अणप्पसरूवस्स कम्माणं खएणुप्पत्तिविरोहा । ण घादिकम्मोदयजणिओ, णडे वि धादिकम्मोदए केवहोनेके कारण संयतासंयतके समान भिन्नजातीयताको प्राप्त सम्यग्मिथ्यात्वका पांचों शानोंमें, अथवा तीनों अज्ञानों में अस्तित्व होनेका विरोध है।
शेष सूत्रार्थ सुगम है।
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टिसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछमस्थ गुणस्थान तक भाव ओघके समान हैं ॥ ४६॥
यह सूत्र सुगम है, क्योंकि, ज्ञानमार्गणामें ओघसे भावकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है।
मनःपर्ययज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयतसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक भाव ओघके समान हैं ॥४७॥
यह सूत्र भी सुगम है। केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवली भाव ओघके समान है॥४८॥ फ्योंकि, क्षायिकभावके प्रति कोई भेद नहीं है। शंका-'संयोग' यह कौनसा भाव है ? ।
समाधान-'सयोग' यह अनादि पारिणामिक भाव है। इसका कारण यह है कि यह योग न तो औपशमिक भाव है, क्योंकि, मोहनीयकर्मके उपशम नहीं होने पर भी योग पाया जाता है। न वह क्षायिक भाव है, क्योंकि, आत्मस्वरूपसे रहित योगकी कौके क्षयसे उत्पत्ति माननेमें विरोध आता है। योग घातिकर्मोदय-जनित भी नहीं है,
१xxx मतिश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलज्ञानिनां च सामान्यवत् । स. सि. १, .
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