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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ७, १९.
विणासणट्ठमागदमिदं सुत्तं । संजमघादिचारित्त मोहणीयकम्मोदयसमुप्पण्णत्तादो असंजदभावो ओदइओ | अदीदगुणट्ठाणेसु असंजदभावस्स अत्थितं एदेण सुतेण परूविदं । तिरिक्खगदीए तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियपज्जत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु मिच्छादिट्टि पहुडि जाव संजदासंजदाणमोघं ॥ १९ ॥
कुदो ? मिच्छादिति ओदइओ, सासणसम्मादिट्ठि त्ति पारिणामिओ, सम्मामिच्छादिट्टि त्ति खओवसमिओ, सम्मादिट्ठि त्ति ओवसमिओ खइओ खओवसमिओ वा; ओदइएण भावेण पुणो असंजदो, संजदासंजदो त्ति खओवसमिओ भावो इच्चेदेहि ओघादो चउव्विहतिरिक्खाणं भेदाभावा । पंचिदियतिरिक्खजोणिणीसु भेदपदुप्पायणढमुत्तरमुत्तं भणदि
णवरि विसेसो, पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु असंजदसम्मादिट्टि त्ति को भावो, ओवसमिओ वा खओवसमिओ वा भावो ॥ २० ॥
संदेहको विनाश करनेके लिए यह सूत्र आया है । द्वितीयादि पृथिवीगत असंयत सम्यदृष्टि नारकियोंका असंयतभाव संयमघाती चारित्रमोहनीयकर्मके उदयसे उत्पन्न होने के कारण औदयिक है । तथा, इस सूत्र के द्वारा अतीत गुणस्थानोंमें असंयतभावके अस्तित्वका निरूपण किया गया है ।
तिर्यंचगतिमें तिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंच, पंचेन्द्रियतिर्यंचपर्याप्त और पंचेन्द्रियतियंच योनिमतियों में मिथ्यादृष्टिसे लेकर संयतासंयत गुणस्थान तक भाव ओघके समान हैं ॥ १९ ॥
क्योंकि, मिथ्यादृष्टि यह औदयिकभाव है, सासादनसम्यग्दृष्टि यह पारिणामिकभाष है, सम्यग्मिथ्यादृष्टि यह क्षायोपशमिकभाव है, सम्यग्दृष्टि यह औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक भाव है, तथा औदयिकभावकी अपेक्षा वह असंयत है; संयतासंयत यह क्षायोपशमिक भाव है । इस प्रकार ओघसे चारों प्रकारके तिर्यचोंकी भावप्ररूपणा में कोई भेद नहीं है ।
अब पंचेन्द्रियतिर्यच योनिमतियों में भेद प्रतिपादन करनेके लिए उत्तर सूत्र
कहते हैं
विशेष बात यह है कि पंचेन्द्रियतिर्यंच योनिमतियों में असंयतसम्यग्दृष्टि यह कौनसा भाव है ? औपशमिक भाव भी है और क्षायोपशमिक भाव भी है ॥ २० ॥
१ तिर्यग्गतौ तिरश्चां मिथ्यादृष्टयादिसंयतासंयतान्तानां सामान्यवत् । स. सि. १,८०
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