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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ७, ७.
तं जहा- चारित्तमोहणीयकम्मोदर खओवसमसण्णिदे संते जदो संजदासंजदपमत्तसंजद - अप्पमत्त संजदत्तं च उप्पज्जदि, तेणेदे तिण्णि वि भावा खओवसमिया । पच्चक्खाणावरण-चदुसंजलण-णवणोकसायाणमुदयस्स सव्वष्पणा चारित्तविणासणसत्तीए अभावादी तस्स खयसण्णा । तेसिं चेव उप्पण्णचारित्तं सेडिं वावारंतस्स उवसमसण्णा | हि दोहिंतो उप्पण्णा एदे तिण्णि वि भावा खओवसमिया जादा । एवं संते पच्चक्खाणावरणस्स सव्वघादित्तं फिट्टदि ति उत्ते ण फिट्टदि, पच्चक्खाणं सव्वं घादयदि तितं सव्वधादी उच्चदि । सव्वमपच्चक्खाणं ण घादेदि, तस्स तत्थ वावाराभावा । तेण तप्परिणदस्स सव्वघादिसण्णा । जस्सोदए संते जमुप्पज्जमाणमुवलब्भदि ण तं पडि तं सव्वघाइववएसं लहह, अइप्पसंगादो | अपच्चक्खाणावरणचउक्कस्स सव्वघादिफद्दयाणमुदयक्खएण तेसिं चैव संतोवसमेण चदुसंजल-णवणोकसायाणं सव्वघादिफद्दयाणमुदयक्खएण तेसिं चेव संतोवसमेण देसघादिफद्दयाणमुदएण पच्चक्खाणावरणचदुक्कस्स सव्त्रघादिफद्दयाणमुदएण देससंजमो
चूंकि क्षयोपशमनामक चारित्रमोहनीयकर्मका उदय होने पर संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयतपना उत्पन्न होता है, इसलिए ये तीनों ही भाव क्षायोपशमिक हैं । प्रत्याख्यानावरणचतुष्क, संज्वलनचतुष्क और नव नोकषायके उदयके सर्व प्रकारसे चारित्र विनाश करनेकी शक्तिका अभाव है, इसलिए उनके उदयकी क्षय संज्ञा है। उन्हीं प्रकृतियों की उत्पन्न हुए चारित्रको अथवा श्रेणीको आवरण नहीं करनेके कारण उपशम संज्ञा है । क्षय और उपशम, इन दोनोंके द्वारा उत्पन्न हुए ये उक्त तीनों भाव भी क्षायोशमिक हो जाते हैं ।
शंका- यदि ऐसा माना जाय, तो प्रत्याख्यानावरण कषायका सर्वघातिपना नष्ट हो जाता है ?
समाधान -- वैसा माननेपर भी प्रत्याख्यानावरण कषायका सर्वघातिपना नष्ट नहीं होता है, क्योंकि, प्रत्याख्यानावरण कषाय अपने प्रतिपक्षी सर्व प्रत्याख्यान (संयम) गुणको घातता है, इसलिए वह सर्वघाती कहा जाता है । किन्तु सर्व अप्रत्याख्यानको नहीं घातता है, क्योंकि, उसका इस विषय में व्यापार नहीं है । इसलिए इस प्रकार से परिणत प्रत्याख्यानावरण कषायके सर्वघाती संज्ञा सिद्ध है । जिस प्रकृतिके उदय होने पर जो गुण उत्पन्न होता हुआ देखा जाता है, उसकी अपेक्षा वह प्रकृति सर्वघाति संज्ञाको नहीं प्राप्त होती है । यदि ऐसा न माना जाय तो अतिप्रसंग दोष आजायगा । अप्रत्याख्यानावरणचतुष्कके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयक्षयसे और उन्हींके सदवस्थारूप उपशमसे, तथा चारों संज्वलन और नवों नोकषायोंके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षयसे और उन्हींके सदवस्थारूप उपशमसे तथा देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे और प्रत्याख्यानावरण कषायचतुष्कके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयसे देशसयंम उत्पन्न होता
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