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________________ १९२ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ७, १. खएण समुभवादो । लद्धी पंचविहा दाणादिभेएण। सम्मत्तमेयविहं वेदगसम्मत्तवदिरेकेण अण्णसम्मत्ताणमणुवलंभा । चारित्तमेयविहं, सामाइयछेदोवट्ठावण-परिहारसुद्धिसंजमविवक्खाभावा। संजमासंजमो एयविहो। एवमेदे सव्वे वि वियप्पा अट्ठारस होति' (१८)। पारिणामिओ तिविहो भव्वाभव-जीवत्तमिदि। उत्तं च एयं ठाणं तिणि वियप्पा तह पारिणामिए होति ।। भव्वाभव्वा जीवा अत्तवणदो चेव बोद्धव्वा' ॥ १० ॥ एदेसिं पुव्वुत्तभाववियप्पाणं संगहगाहा इगिवीस अह तह णव अट्ठारस तिणि चेव बोद्धव्वा । ओदइयादी भावा वियप्पदो आणुपुव्वीए ॥ ११ ॥ किया गया है, क्योंकि, वह अपने विरोधी कर्मके क्षयसे उत्पन्न होता है। दानादिकके भेदसे लब्धि पांच प्रकारकी है। सम्यक्त्व एक प्रकारका है, क्योंकि, इस भावमें वेदकसम्यक्त्वको छोड़कर अन्य सम्यक्त्वोंका अभाव है। चारित्र एक विकल्परूप ही है, क्योंकि, यहांपर सामायिक, छेदोपस्थापना और परिहारविशुद्धिसंयमकी विवक्षाका अभाव है। संयमासंयम एक भेदरूप है। इस प्रकार मिलकर ये सब विकल्प अठारह होते हैं (१८)। पारिणामिकभाव, भव्य, अभव्य और जीवत्वके भेदसे तीन प्रकारका है। कहा भी है पारिणामिकभावमें स्थान एक तथा भव्य, अभव्य और जीवत्वके भेदसे विकल्प तीन प्रकारके होते हैं। ये विकल्प आत्माके असाधारण भाव होनेसे ग्रहण किये गये जामना चाहिए ॥ १०॥ इन पूर्वोक्त भावोंके विकल्पोंको बतलानेवाली यह संग्रह गाथा है औदयिक आदि भाव विकल्पोंकी अपेक्षा आनुपूर्वीसे इक्कीस, आठ, नौ, अट्ठारह और तीन भेदवाले हैं, ऐसा जानना चाहिए ॥ ११॥ १ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्धयश्चतुरित्रिपंचभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्च । त. सू. २, ५. २ जीवभव्याभव्यत्वानि च । त. सू, २, ७. ३ अ-कपत्योः 'अट्ठवणदो' आप्रतौ अट्ठणवदो' मप्रतौ अथवणदो' सप्रतौ 'अधवणदो' इति पाठः। ४ असाधारणा जीवस्य भावाः पारिणामिकास्त्रय एव । स. सि. २, ७. अन्यद्रव्यासाधारणास्रयः पारिणामिकाः | xxx अस्तित्वादयोऽपि पारिणामिकाः भावाः सन्ति xx सूत्रे तेषां ग्रहणं कस्मान्न कृतं ? अन्यद्रव्यसाधारणत्वादसूत्रिताः । त. रा. वा. २, ७. ५ द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् । त. सू. २, २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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