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१, ७, १.] भावाणुगमे णिदेसपरूवणं
[१९३ अधवा सण्णिवादियं पडुच्च छत्तीसभंगा' । सण्णिवादिएत्ति का सण्णा ? एक्कम्हि गुणट्ठाणे जीवसमासे वा बहवो भावा जम्हि सण्णिवदंति तेसिं भावाणं सण्णिवादिएत्ति सण्णा । एग-दु-ति-चदु-पंचसंजोगेण भंगा परूविज्जंति । एगसंजोगेण जधा- ओदइओ ओदइओ त्ति 'मिच्छादिट्ठी असंजदो य' । दसणमोहणीयस्स उदएण मिच्छादिहि त्ति भावो, असंजदो त्ति संजमघादीणं कम्माणमुदएण। एदेण कमेण सव्चे वियप्पा परूवेदव्वा । एत्थ सुत्तगाहा
एकोत्तरपदवृद्धो रूपाद्यैर्भाजितं च पदवृद्धः ।
गच्छः संपातफलं समाहतः सन्निपातफलं ॥१२॥ एदस्स भावस्स अणुगमो भावाणुगमो । तेण दुविहो णिद्देसो, ओघेण संगहिदो, आदेसेण असंगहिदो त्ति णिद्देसो दुविहो होदि, तदियस्स णिद्देसस्स संभवाभावा ।
अथवा, सांनिपातिककी अपेक्षा भावोंके छत्तीस भंग होते हैं। शंका--सांनिपातिक यह कौनसी संज्ञा है ?
समाधान-एक ही गुणस्थान या जीवसमासमें जो बहुतसे भाव आकर एकत्रित होते हैं, उन भावोंकी सांनिपातिक ऐसी संज्ञा है।
__अब उक्त भावोंके एक, दो, तीन, चार और पांच भावोंके संयोगसे होनेवाले भंग कहे जाते हैं। उनमेंसे एकसंयोगी भंग इस प्रकार है- औदयिक-औदयिकभाव, जैसे- यह जीव मिथ्यादृष्टि और असंयत है। दर्शनमोहनीयकर्मके उदयसे मिथ्यादृष्टि यह भाव उत्पन्न होता है। संयमघाती कमौके उदयसे 'असंयत' यह भाव उत्पन्न होता है। इसी क्रमसे सभी विकल्पोंकी प्ररूपणा करना चाहिए । इस विषयमें सूत्र-गाथा है
___ एक एक उत्तर पदसे बढ़ते हुए गच्छको रूप (एक) आदि पदप्रमाण बढ़ाई हुई राशिसे भाजित करे, और परस्पर गुणा करे, तब सम्पातफल अर्थात् एकसंयोगी, द्विसंयोगी आदि भंगोंका प्रमाण आता है। तथा इन एक, दो, तीन आदि भंगोको जोड़ देने पर सन्निपातफल अर्थात् सान्निपातिकभंग प्राप्त हो जाते हैं ॥१२॥
(इस करणगाथाका विशेष अर्थ और भंग निकालनेका प्रकार समझनेके लिए देखो भाग ४, पृष्ठ १४३ का विशेषार्थ ।)
इस उक्त प्रकारके भावके अनुगमको भावानुगम कहते हैं । उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका होता है। ओघसे संगृहीत और आदेशसे असंगृहीत, इस प्रकार निर्देश दो प्रकारका होता है, क्योंकि, तीसरे निर्देशका होना संभव नहीं है।
१ अथार्षोक्तः सान्निपातिकमावः कतिविध इत्यत्रोच्यते-पड़िशातिविधः षड्विंशद्विधः एकचत्वारिंशद्विध इत्येवमादिरागमे उक्तः । त. रा. वा. २, ७.
२ ठप्पंचादेयंतं स्वृत्तरभाजिदे कमेण हदे । लद्धं मिच्छचउक्के देसे संजोगगुणगारा ॥ गो. क. ७९९.
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