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धवलाका गणितशास्त्र
लिये घातांक नियमोंका उपयोग सर्वसाधारण है । उदाहरणार्थ- विश्वभरके विद्युत्कणोंकी गणना करके उसकी व्यक्ति इस प्रकार की गई है- १३६:२५६ तथा, रूढ संख्याओंके विकलन (distribution of primes) को सूचित करनेवाली स्क्यू ज संख्या (Skewes' number) निम्न प्रकारसे व्यक्त की जाती है
१०१०१०३४
संख्याओंको व्यक्त करनेवाले उपर्युक्त समस्त प्रकारोंका उपयोग धवलामें किया गया है। इससे स्पष्ट है कि भारतवर्षमें उन प्रकारोंका ज्ञान सातवीं शताब्दिसे पूर्व ही सर्व-साधारण हो गया था।
अनन्तका वर्गीकरण धवलामें अनन्तका वर्गीकरण पाया जाता है । साहित्यमें अनन्त शब्दका उपयोग अनेक अर्थोमें हुआ है। जैन वर्गीकरणमें उन सबका ध्यान रखा गया है । जैन वर्गीकरणके अनुसार अनन्तके ग्यारह प्रकार हैं। जैसे
(१) नामानन्त'-- नामका अनन्त । किसी भी वस्तु-समुदायके यथार्थतः अनन्त होने या न होनका विचार किये विना ही केवल उसका बहुत्व प्रगट करनेके लिये साधारण बोलचालमें अथवा अबोध मनुष्यों द्वारा या उनके लिये, अथवा साहित्यमें, उसे अनन्त कह दिया जाता है । ऐसी अवस्थामें 'अनन्त' शब्दका अर्थ नाममात्रका अनन्त है। इसे ही नामानन्त कहते हैं।
१ संख्या १३६ २२५६ को दाशमिक-क्रमसे व्यक्त करने पर जो रूप प्रकट होता है वह इस प्रकार है१५,७४७,७२४,१३६,२७५,००२,५७७,६०५,६५३,९६१,१८१,५५५,४६८,०४४,७१७,९१४,५७२, ११६,७०९,३६६,२३१,४२५,०७६,१८५,६३१,०३१,२९६,
इससे देखा जा सकता है कि २ का तृतीय वर्गित-संवर्गित अर्थात् २५६२५६ विश्वभरके समस्त विद्युत्कोंकी संख्यासे अधिक होता है। यदि हम समस्त विश्वको एक शतरंजका फलक मान लें और विद्युतकणोंको उसकी गोटियां, और दो विद्युत् कणोंकी किसी भी परिवृत्तिको इस विश्वके खेलकी एक 'चाल' मान लें, तो समस्त संभव 'चालों की संख्या
१.१० १०३४ होगी। यह संख्या रूढ संख्याओं (primes ) के विभाग ( distribution) से भी संबंध रखती है। २ जीवाजीवमिस्सदव्वस्स कारणणिरवेक्खा सण्णा अणंता । धवला ३, पृ. ११.
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