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________________ १, ७, १. ] भावागमे सिपरूवणं [ १८७ एदेसि सुद्दिपरिणामाणं पगरिसापगरिसत्तं तिव्व-मंदभावो णाम । एदेहि चेव परिणामेहि असंखेज्जगुणाए सेडीए कम्मसडणं कम्मसडणजणिदजीवपरिणामो वा णिज्जराभावो णाम । तम्हा पंचैव जीवभावा इदि नियमो ण जुज्जदे ? ण एस दोसो, जदि जीवादिदव्यादो तिव्व-मंदादिभावा अभिण्णा होंति, तो ण तेसिं पंचभावेसु अंतभावो, दव्यत्तादो । अह भेदो अवलंबेज्ज, पंचण्हमण्णदरो होज्ज, एदेहिंतो पुधभूदछट्ट भावाणुवलंभा | भणिदं च - ओदइओ उवसमिओ खइओ तह वि य खओवसमिओ य । परिणामिओ दुभावो उदएण दु पोग्गलाणं तु ॥ ५ ॥ भाव णाम किं ? दव्यपरिणामो पुव्यावरकोडिवदिरित्तवट्टमाणपरिणामुवलक्खियदव्यं वा । कस्स भावो ! छण्हं दव्वाणं । अथवा ण कस्सर, परिणामि परिणामाणं इन सूत्रोद्दिष्ट परिणामोंकी प्रकर्षताका नाम तीव्रभाव और अप्रकर्षताका नाम मंदभाव है । इन्हीं परिणामोंके द्वारा असंख्यात गुणश्रेणीरूपसे कर्मोंका झरना, अथवा कर्म-झरनेसे उत्पन्न हुए जीवके परिणामोंको निर्जराभाव कहते हैं । इसलिए पांच ही जीवके भाव हैं, यह नियम युक्तिसंगत नहीं है ? समाधान - यह कोई दोष नहीं, क्योंकि, यदि जीवादि द्रव्यसे तीव्र, मंद आदि भाव अभिन्न होते हैं, तो उनका पांच भावों में अन्तर्भाव नहीं होता है, क्योंकि, वे स्वयं द्रव्य हो जाते हैं । अथवा, यदि भेद माना जाय, तो पांचों भावोंमेंसे कोई एक होगा, क्योंकि, इन पांच भावोंसे पृथग्भूत छठा भाव नहीं पाया जाता है । कहा भी है औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायिकभाव, क्षायोपशमिकभाव और पारिणामिकभाव, ये पांच भाव होते हैं । इनमें पुलोंके उदयसे (औदायिकभाव) होता हैं ॥५॥ ( अब निर्देश, स्वामित्व आदि प्रसिद्ध छह अनुयोगद्वारोंसे भावनामक पदार्थका निर्णय किया जाता है - ) शंका- भाव नाम किस वस्तुका है ? समाधान- द्रव्यके परिणामको अथवा पूर्वापर कोटिसे व्यतिरिक्त वर्तमान पर्याय उपलक्षित द्रव्यको भाव कहते हैं । शंका- भाव किसके होता है, अर्थात् भावका स्वामी कौन है ? समाधान-छहीं द्रव्योंके भाव होता है, अर्थात् भावोंके स्वामी छहों द्रव्य हैं । अथवा, किसी भी द्रव्यके भाव नहीं होता है, क्योंकि, पारिणामी और पारिणामके संग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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