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________________ १८८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ७, १. संगहणयादो भेदाभावा। केण भावो? कम्माणमुदएण खएण खओवसमेण कम्माणमुवसमेण सभावदो वा । तत्थ जीवदव्वस्स भावा उत्तपंचकारणेहिंतो होति । पोग्गलदव्यभावा पुण कम्मोदएण विस्ससादो वा उप्पज्जंति । सेसाणं चदुण्हं दव्वाणं भावा सहावदो उप्पजंति । कत्थ भावो? दव्वम्हि चेव, गुणिव्वदिरेगेण गुणाणमसंभवा । केवचिरो भावो? अणादिओ अपज्जवसिदो जहा- अभव्वाणमसिद्धदा, धम्मत्थिअस्स गमणहेदुत्तं, अधम्मत्थिअस्स ठिदिहेउत्तं, आगासस्स ओगाहणलक्खणत्तं, कालव्यस्स परिणामहेदुत्तमिच्चादि । अणादिओ सपञ्जवसिदो जहा- भव्यस्स असिद्धदा भव्यत्तं मिच्छत्तमसंजमो इच्चादि । सादिओ अपज्जवसिदो जहा- केवलणाणं केवलदसणमिच्चादि । सादिओ सपज्जवसिदो जहासम्मत्तसंजमपच्छायदाणं मिच्छत्तासंजमा इच्चादि । कदिविधो भावो? ओदइओ उवसमिओ खइओ खओवसमिओ पारिणामिओ त्ति पंचविहो । तत्थ जो सो ओदइओ जीवदव्यभावो नयसे कोई भेद नहीं है। शंका-भाव किससे होता है, अर्थात् भावका साधन क्या है ? समाधान-भाव, कौके उदयसे, क्षयसे, क्षयोपशमसे, कर्मों के उपशमसे, अथवा स्वभावसे होता है। उनमेंसे जीवद्रव्यके भाव उक्त पांचों ही कारणोंसे होते हैं, किन्तु पद्धलद्रव्यके भाव कौके उद्यसे, अथवा स्वभावसे उत्पन्न होते हैं। तथा शेष चार द्रव्योंके भाव स्वभावसे ही उत्पन्न होते हैं। शंका-भाव कहां पर होता है, अर्थात् भावका अधिकरण क्या है ? समाधान-भाव द्रव्यमें ही होता है, क्योंकि गुणीके विना गुणोंका रहना असम्भव है। शंका-भाव कितने काल तक होता है ? समाधान-भाव अनादि-निधन है । जैसे- अभव्यजीवोंके असिद्धता, धर्मास्तिकायके गमनहेतुता, अधर्मास्तिकायके स्थितिहेतुता, आकाशद्रव्यके अवगाहनस्वरूपता, और कालद्रब्यके परिणमनहेतुता, इत्यादि । अनादि-सान्तभाव, जैसे- भव्यजीवकी असिद्धता, भव्यत्व, मिथ्यात्व, असंयम, इत्यादि । सादि-अनन्तभाव जैसै-केवलज्ञान, केवलदर्शन, इत्यादि । सादि-सान्त भाव, जैसे- सम्यक्त्व और संयम धारणकर पीछे आए हुए जीवोंके मिथ्यात्व, असंयम इत्यादि । शंका-भाव कितने प्रकारका होता है ? समाधान-औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिकके भेदसे भाव पांच प्रकारका है। उनमेंसे जो औदयिकभाव नामक जीवद्रव्यका भाव १ औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च । त. सू. २, १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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