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________________ १७८ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं [१, ६, ३९४. मुमो ( ९ ) अणिट्टी (१०) अपुच्वो जादो (११) । हेट्ठा ओदरिदूर्णतरिदो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागं परिभमिय अंते अपुत्रो जादो । लद्धमंतरं । तदो णिद्दा - पयलाणं बंधे वोच्छिष्णे मरिय विग्गहं गदो । अट्ठवस्सेहि वारस अंतोमुहुत्तेहि य ऊणओ आहारकालो उक्कस्संतरं । एवं चेव तिण्हमुवसामगाणं । णवरि दस णव अट्ठ अंतो मुहुत्ता समयाहिया ऊणा कादव्वा चदुहं खवाणमोघं ॥ ३९४ ॥ सुगममेदं । सजोगिकेवली ओघं ॥ ३९५ ॥ एदं पि सुगमं । अणाहारा कम्मइयकायजोगिभंगो ॥ ३९६ ॥ शान्तकषाय होकर (८) फिर भी गिरता हुआ सूक्ष्मसाम्पराय ( ९ ) अनिवृत्तिकरण ( १० ) और अपूर्वकरण हुआ (११) । पुनः नीचे उतरकर अन्तरको प्राप्त हो अंगुलके असंख्यातवें भाग कालप्रमाण परिभ्रमणकर अन्तमें अपूर्वकरण उपशामक हुआ । इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ । तत्पश्चात् निद्रा और प्रचला, इन दोनों प्रकृतियोंके बंधसे व्युच्छिन्न होनेपर मरकर विग्रहको प्राप्त हुआ । इस प्रकार आठ वर्ष और बारह अन्तर्मुहूर्तोंसे कम आहारककाल ही अपूर्वकरण उपशामकका उत्कृष्ट अन्तर है । इसी प्रकार शेष तीनों उपशामकोका भी अन्तर कहना चाहिए । विशेषता यह है कि आहारककालमें अनिवृत्तिकरण उपशामकके दश, सूक्ष्मसाम्पराय उपशामकके नौ और उपशान्तकषाय उपशामकके आठ अन्तर्मुहूर्त और एक समय कम करना चाहिए । आहारक चारों क्षपकोंका अन्तर ओघके समान है ॥ ३९४ ॥ यह सूत्र सुगम है । आहारक सयोगिकेवलीका अन्तर ओघके समान है ।। ३९५ ।। यह सूत्र भी सुगम है । अनाहारक जीवोंका अन्तर कार्मणकाययोगियोंके समान है || ३९६ ॥ १ चतुर्णां क्षपकाणां सयोगकेवलिनां च सामान्यवत् । स. सि. १, ८. २ प्रतिषु ' अणाहार ' इति पाठः । ३ अनाहारकेषु मिथ्यादृष्टेर्नानाजीवापेक्षया एकजीवापेक्षया च नास्त्यन्तरम् । सासादनसम्यग्दृष्टेर्नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण पल्योपमासंख्येयभागः । एकजीवं प्रति नास्त्यन्तरम् । असंयतसम्यग्दृष्टेर्नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण मासपृथक्त्वम् । एकजीवं प्रति नास्त्यन्तरम् । सयोगिकेवलिनां नानाखीबापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण वर्षपृथक्त्वम् । एक्जीवं प्रति नास्त्यन्तरम् । स. सि. १,८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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