________________
१, ६, ३९७. ]
अंतरागमे अंणाहारि - अंतरपरूवणं
[ १७९
मिच्छादिट्ठीणं णाणेगजीवं पडुच्च अंतराभावेण, सासणसम्मादिट्ठीणं णाणाजीवं पडुच्च एगसमयपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागजहण्णुक्कस्संतरेहि य, एगजीवं पडुच्च अंतराभावेण य, असंजदसम्मादिट्ठीणं णाणाजीवं पडुच्च एगसमय मासपुधत्तंतेरेहि य, एगजीवं पडुच्च अंतराभावेण य, सजोगिकेवलीणं णाणाजीव पडुच्च एगसमय-वासपुधत्तजहण्णुक्कस्संतरेहि य, एगजीवं पडुच्च अंतराभावेण य दोन्हं साधम्मुवलंभादो ।
विसेसपदुप्पायणट्टमुत्तरमुत्तं भणदि
वरि विसेसा, अजोगिकेवली ओघं ॥ ३९७ ॥
सुगममेदं ।
( एवं आहारमग्गणा समत्ता । )
एवमंतराणुगमो चि समत्तमणिओगद्दारं ।
क्योंकि, मिथ्यादृष्टियोंका नाना और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे सासादनसम्यग्दृष्टियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पल्योपमका असंख्यातवां भाग अन्तरोंसे, तथा एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे, असंयतसम्यग्दृष्टियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट मास· पृथक्त्व अन्तरोंके द्वारा, और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे, सयोगिकेवलियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व अन्तरसे, तथा एक जीवकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे दोनोंमें समानता पाई जाती है ।
अनाहारक जीवोंमें विशेषता प्रतिपादन करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते हैंकिन्तु विशेषता यह है कि अनाहारक अयोगिकेवलीका अन्तर ओधके समान है ॥ ३९७ ॥
यह सूत्र सुगम है।
Jain Education International
इस प्रकार आहारमार्गणा समाप्त हुई ।
इस प्रकार अन्तरानुगम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
१ अयोगिकेवलिनां नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । उत्कर्षेण षण्मासाः । एकजीव प्रति नास्त्यन्तरम् । स. सि. १, ८.
२ अन्तरमवगतम् । स. सि. १,८.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org