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________________ १६८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ६, ३६७. मत्तो जादो । पुणो वि पमत्तत्तं गदो । लद्धमंतरं । एवं चेव अप्पमत्तस्स वि जहण्णंतरं वत्तव्वं । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३६७॥ तं जहा- एक्को उवसमसेढीदो ओदरिय पमत्तो होदूण पुणो संजदासंजदो असंजदो अप्पमत्तो च होदूण पमत्तो जादो । लद्धमंतरं । अप्पमत्तस्स उच्चदे- एक्को सेडीदो.ओदरिय अप्पमत्तो जादो । पुणो पमत्तो असंजदो संजदासंजदो च होदूण भूओ अप्पमत्तो जादो । लद्धमुक्कस्संतरं । तिण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३६८ ॥ उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ ३६९ ॥ एदाणि दो वि सुत्ताणि सुगमाणि । अप्रमत्तसंयत हुआ। फिर भी प्रमत्त गुणस्थानको प्राप्त हुआ। इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ। इसी प्रकारसे उपशमसम्यग्दृष्टि अप्रमत्तसंयतका भी जघन्य अन्तर कहना चाहिए। उपशमसम्यग्दृष्टि प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३६७॥ जैसे- एक संयत उपशमश्रेणीसे उतरकर प्रमत्तसंयत होकर पुनः संयतासंयत, असंयत और अप्रमत्तसंयत होकर प्रमत्तसंयत हआ। इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ। उपशमसम्यग्दृष्टि अप्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं- एक संयत उपशमश्रेणीसे उतरकर अप्रमत्तसंयत हुआ। पुनः प्रमत्तसंयत, असंयत और संयतासंयत होकर फिर भी अप्रमत्तसंयत होगया। इस प्रकार उत्कृष्ट अन्तर लब्ध हुआ। उपशमसम्यग्दृष्टि अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय, इन तीनों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥३६८॥ उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ॥ ३६९॥ ये दोनों ही सूत्र सुगम हैं। १ त्रयाणामुपशमकानां नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८. २ उत्कर्षेण वर्षपृथक्त्वम् ।। स. सि.१, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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