________________
१, ६, ३६६.] अंतराणुगमे उवसमसम्मादिट्ठि-अंतरपरूवणं [१६७ मच्छिय असंजदो जादो। पुणो वि अंतोमुहुत्तेण संजमासंजमं पडिवण्णो। लद्धं जहणंतरं ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३६३ ॥
तं जहा- एक्को सेडीदो ओदरिय संजदासंजदो जादो । अंतोमुहुत्तमच्छिय अप्पमत्तो पमत्तो असंजदो च होदूण संजदासंजदो जादो । लद्धमुक्कस्संतरं ।
पमत्त-अप्पमत्तसंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमयं ॥३६४ ॥
सुगममेदं ।
उक्कस्सेण पण्णारस रादिदियाणि ॥ ३६५॥ एवं पि सुगमं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं ॥ ३६६ ॥ तं जहा- एको उवसमसेढीदो ओदरिय पमत्तो होदण अंतोमुहुत्तमच्छिय अप्प
.....................
मुहूर्त रहकर असंयतसम्यग्दृष्टि होगया। फिर भी अन्तर्मुहूर्तसे संयमासंयमको प्राप्त हुआ। इस प्रकार जघन्य अन्तर लब्ध हुआ।
उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।। ३६३ ।।
जैसे- एक संयत उपशमश्रेणीसे उतरकर संयतासंयत हुआ। अन्तर्मुहूर्त रहकर अप्रमत्तसंयत, प्रमत्तसंयत और असंयतसम्यग्दृष्टि होकर संयतासंयत होगया। इस प्रकार उत्कृष्ट अन्तर लब्ध हुआ।
उपशमसम्यग्दृष्टि प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है ॥ ३६४ ॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर पन्द्रह रात-दिन है ॥ ३६५ ॥ यह सूत्र भी सुगम है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३६६ ॥ जैसे- एक संयत उपशमश्रेणीसे उतरकर प्रमत्तसंयत हो अन्तर्मुहूर्त रह कर
१ प्रमत्ताप्रमत्तसंयतयो नाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८. २ उत्कर्षेण पंचदश रात्रिदिनानि । स. सि. १,८. ३ एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १, ८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org