________________
१६६ ]
छक्खंडागमे जीवाणं
संजमासंजमं पडिवण्णो । अंतोमुहुत्तेण पुणो असंजदो जादो । लद्धं जहणंतरं ।
उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३५९ ॥
तं जहा - एको सेडीदो ओदरिय असंजदो जादो । तत्थ अंतोमुहुत्तमच्छिय संजमासंजमं पडिवण्णो । तदो अप्पमत्तो पत्तो होदूण असंजदो जादो । लद्ध मुक्कस्संतरं । संजदासंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीचं पडुच्च जहणेण एगसमयं ॥ ३६० ॥
सुगममेदं ।
उक्कस्सेण चोदस रादिंदियाणि ॥ ३६१ ॥
एदं पि सुगमं ।
एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३६२ ॥
तं जहा - एक्को उवसमसेढीदो ओदरिय संजमासंजमं पडिवण्णो । अंतोमुहुत्त
रहकर संयमासंयमको प्राप्त हुआ । अन्तर्मुहूर्त से पुनः असंयत होगया । इस प्रकार जघन्य अन्तर लब्ध हुआ ।
उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३५९ ॥
[ १, ६, ३५९.
जैसे- - एक संयत उपशमश्रेणीसे उतरकर असंयतसम्यग्दृष्टि हुआ। वहां अन्तमुहूर्त रहकर संयमासंयमको प्राप्त हुआ । पश्चात् अप्रमत्त और प्रमत्तसंयत होकर असंयतसम्यग्दृष्टि होगया । इस प्रकार उत्कृष्ट अन्तर लब्ध हुआ ।
उपशमसम्यग्दृष्टि संयतासंयतोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है ।। ३६० ॥
यह सूत्र सुगम है ।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर चौदह रात-दिन है ॥ ३६१ ॥
यह सूत्र भी सुगम है ।
उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३६२ ॥ जैसे - एक संयत उपशमश्रेणीसे उतरकर संयमासंयमको प्राप्त हुआ और अन्त
१ संयतासंयतस्य नानाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८.
२ उत्कर्षेण चतुर्दश रात्रिदिनानि । स. सि. १, ८.
३ एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः । स. सि, १,८०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org