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१, ६, ३५८.] अंतराणुगमे उवसमसम्मादिट्ठि-अंतरपरूवर्ण [१६५ वण्णो । अंतोमुहुत्तावसेसे आउए अप्पमत्तो जादो । लद्धमंतरं (१)। पमत्तापमत्तसंजदट्ठाणे खइयं पट्टविय (२) खवगसेडीपाओग्गअप्पमत्तो होदूण (३) खवगसेढीमारूढो अपुव्वादिछहि अंतोमुहुत्तेहि णिव्वुदो । अंतरस्सादिल्लमेक्कं बाहिरेसु णवसु अंतोमुहत्तेसु सोहिदे अवसेसा अट्ट । एदेहि ऊणपुनकोडीए सादिरेयाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि अप्पमत्तुक्कस्संतरं।
उवसमसम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ ३५६ ॥
णिरंतरमुवसमसम्मत्तं पडिवज्जमाणजीवाभावा । उक्कस्सेण सत्त रादिदियाणि ॥ ३५७ ॥ किमत्थो सत्तरादिदियविरहणियमो ? सभावदो । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥३५८ ॥
तं जहा- एकको उवसमसेढीदो ओदरिय असंजदो जादो । अंतोमुहुत्तमच्छिद्ण आयुके अन्तर्मुहूर्त अवशिष्ट रह जाने पर अप्रमत्तसंयत हुआ। इस प्रकार अन्तर लब्ध होगया (१)। तत्पश्चात् प्रमत्त या अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यक्त्वको प्रस्थापितकर (२) क्षपकश्रेणीके प्रायोग्य अप्रमत्तसंयत होकर (३) क्षपकश्रेणीपर चढ़ा और अपूर्वकरणादि छह अन्तर्मुहूर्तोंसे निर्वाणको प्राप्त हुआ। अन्तरके आदिका एक अन्तर्मुहूर्त बाहरी नौ अन्तर्मुहूर्तोंमेंसे घटा देने पर अवशिष्ट आठ अन्तर्मुहूर्त रहे। इनसे कम पूर्वकोटीसे साधिक तेतीस सागरोपमकाल वेदकसम्यग्दृष्टि अप्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
उपशमसम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तर एक समय है ॥ ३५६ ॥
क्योंकि, निरन्तर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवोंका अभाव है। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर सात रात-दिन (अहोरात्र) है ॥ ३५७ ॥ शंका--सात रात दिनोंके अन्तरका नियम किसलिए है ? समाधान-स्वभावसे ही है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३५८ ॥ जैसे- एक संयत उपशमश्रेणीसे उतरकर असंयतसम्यग्दृष्टि हुआ और अन्तर्मुहुर्त १ औपशमिकसम्यग्दृष्टिष्वसंयतसम्यग्दृष्टे नाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, 4. २ उत्कर्षेण सप्त रात्रिदिनानि । स. सि. १, ८. ३ एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १, ८.
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