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१५८ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाण
[ १, ६, ३४२. संजमं पडिवण्णो । पुवकोडिं गमिय मदो समऊणतेत्तीससागरोवमाउढिदिएसु उववण्णो । तदो चुदो पुचकोडाउएसु मणुसेसुववण्णो । थोवावसेसे जीविए संजमासंजमं गदो (५)। तदो अप्पमत्तादिणवहि अंतीमुहुत्तेहि सिद्धो जादो । अदुवस्सहि चोदसअंतोमुहुत्तेहि य ऊणदोपुधकोडीहिं सादिरेयाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि उक्कस्संतरं संजदासंजदस्स ।
पमत्तस्स उच्चदे- एक्को पमत्तो अप्पमत्तो (१) अपुरो (२) अणियट्टी (३) सुहुमो ( ४ ) उवसंतो (५) पुणो वि सुहुमो (६) अणियट्टी (७) अपुव्यो (८) अप्पमत्तो (९) अद्धाखएण कालं गदो । समऊणतेत्तीससागरोवमाउडिदिएसु देवेसु उबवण्णो । तदो चुदो पुव्यकोडाउएसु मणुसेसु उववण्णो। अंतोमुहुत्तावसेसे जीविए पमत्तो जादो । लद्धमंतरं (१) । तदो अप्पमत्तो (२) । उवरि छ अंतोमुहुत्ता । अंतरस्स बाहिरा अट्ठ अंतोमुहुत्ता, अंतरस्स अब्भंतरिमा वि णव, तेणेगंतोमुहुत्तब्भाहियपुवकोडीए सादिरेयाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि उक्कस्संतरं ।।
पूर्वकोटीकाल बिताकर मरा और एक समय कम तेतीस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। वहांसे च्युत हो पूर्वकोटीकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। जीवनके अल्प अवशेष रह जाने पर संयमासंयमको प्राप्त हुआ (५)। इसके पश्चात् अप्रमत्तादि गुणस्थानसम्बन्धी नौ अन्तर्मुहूतासे (श्रेण्यारोहण करता हुआ) सिद्ध होगया । इस प्रकार आठ वर्ष और चौदह अन्तर्मुहूतोंसे कम दो पूर्वकोटियोंसे साधिक तेतीस सागरोपमकाल क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयतका उत्कृष्ट अन्तर होता है ।
क्षायिकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट अन्तर कहते हैं- एक क्षायिकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयत (१) अपूर्वकरण (२) अनिवृत्तिकरण (३) सूक्ष्मसाम्पराय (४) उपशान्तकषाय (५) पुनः सूक्ष्मसाम्पराय (६) अनिवृत्तिकरण (७) अपूर्वकरण (८) अप्रमत्तसंयत (९) होकर (गुणस्थान और आयुके) कालक्षयसे मरणको प्राप्त हो एक समय कम तेतीस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले देवों में उत्पन्न हुआ। पुनः वहांसे च्युत होकर पूर्वकोटीकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहां जीवनके अन्तर्मुहूर्त अवशिष्ट रह जाने पर प्रमत्तसंयत हुआ। इस प्रकार अन्तर लब्ध होगया (१)। पश्चात् अप्रमत्तसंयत हुआ (२)। इनमें ऊपरके छह अन्तर्मुहूर्त और मिलाए । अन्तरके बाहरी आठ अन्तर्मुहूर्त हैं और अन्तरके भीतरी नौ अन्तर्मुहूर्त हैं, इसलिए नौसे आठके घटा देने पर शेष बचे हुए एक अन्तर्मुहूर्तसे अधिक पूर्वकोटीसे साधिक तेतीस सागरोपम क्षायिकसम्यग्दृष्टि प्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
१ प्रतिषु 'माहिए ' इति पाठः ।
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