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________________ १, ६, ३३४.] अंतराणुगमे सम्मादिट्टि-अंतरपरूवर्ण [१५५ सम्मत्ताणुवादेण सम्मादिट्ठीसु असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥३३॥ सुगममेदं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ३३२ ॥ तं जहा- एगो असंजदसम्मादिट्ठी संजमासंजमगुणं गंतूणं सव्वजहण्णेण कालेण पुणो असंजदसम्मादिट्ठी जादो । लद्धमंतरं । उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणं ॥ ३३३ ॥ तं जहा- एगो मिच्छादिट्ठी अट्ठावीससंतकम्मिओ पंचिंदियतिरिक्खसण्णिसम्मुच्छिमपज्जत्तएसु उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो (२) विसुद्धो (३) वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो (४)। संजमासंजमगुणं गंतूणंतरिदो पुवकोडिं जीविय मदो देवो जादो । एवं चदुहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणिया पुषकोडी उक्कस्संतरं । संजदासंजदप्पहुडि जाव उवसंतकसायवीदरागछदुमत्था ओधिणाणिभंगो ॥ ३३४ ॥ सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टियोंमें असंयतसम्यग्दृष्टियोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है ॥ ३३१ ॥ यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३३२ ॥ जैसे- एक असंयतसम्यग्दृष्टि जीव संयमासंयम गुणस्थानको प्राप्त होकर सर्वजघन्य कालसे पुनः असंयतसम्यग्दृष्टि होगया । इस प्रकार अन्तर प्राप्त हुआ। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटी है ॥३३३॥ जैसे- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक मिथ्यादृष्टि जीव पंचेन्द्रिय संज्ञी सम्मूच्छिम पर्याप्तक तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (१) विश्राम ले (२) विशुद्ध हो (३) वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (४)। पुनः संयमासंयम गुणस्थानको जाकर अन्तरको प्राप्त हो पूर्वकोटी वर्षतक जीवित रह कर मरा और देव हुआ। इस प्रकार चार अन्तर्मुहूतोंसे कम पूर्वकोटी वर्ष असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर होता है। संयतासंयत गुणस्थानसे लेकर उपशान्तकषायवीतरागछमस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती सम्यग्दृष्टियोंका अन्तर अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ ३३४ ।। १ प्रतिषु ' संजदप्पहुडि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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