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१४२ - छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
१, ६, २९२. (११) अणियट्टी (१२) अपुल्यो ( १३) हेट्ठा ओदरिय अंतरिदो चक्खुदंसणिहिदि परिभमिय अंतिमे भवे मणुसेसु उपवण्णो । कदकरणिज्जो होदूण अंतोमुहुत्तावसेसे संसारे विसुद्धो अप्पमत्तो जादो। सादासादबंधपरावत्तसहस्सं कादण उवसमसेडीपाओग्गअप्पमत्तो होदण अपुव्वुवसामगो जादो (१४)। लद्धमंतरं । तदो अणियट्टी (१५) सुहमो (१६) उवमंतो (१७) पुणो वि सुहुमो (१८) अणियट्टी (१९) अपुग्यो (२०) अप्पमत्तो (२१) पमत्तो (२२) अप्पमत्तो (२३) होदूग खबगसेढीमारूढो । उवरि छ अंतोमुहुत्ता । एवमट्ठवस्सेहि एगूणत्तीसअंतोमुहुत्तेहि य ऊणिया सगट्टिदी अपुव्यकरणुक्कस्संतरं । एवं चेव तिण्हमुवसामगाणं । णवरि सत्तावीस पंचवीस तेवीस अंतोमुहुत्ता ऊणा कायव्वा ।
चदुण्हं खवाणमोघं ॥२९२ ॥ सुगममेदं ।
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सूक्ष्मसाम्पराय (९) उपशान्तमोह (१०) सूक्ष्मसाम्पराय (११) अनिवृत्तिकरण (१२) और अपूर्वकरणसंयत होकर (१३) तथा नीचे उतरकर अन्तरको प्राप्त हो चक्षुदर्शनीकी स्थितिप्रमाण परिभ्रमणकर अन्तिम भवमें मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। वहांपर कृतकृत्यवेदकसम्यक्त्वी होकर संसारके अन्तर्मुहूर्त अवशिष्ट रह जाने पर विशुद्ध हो अप्रमत्तसंयत हुआ। वहांपर साता और असाता वेदनीयके बंध-परावर्तन-सहस्रोको करके: श्रेणीके योग्य अप्रमत्तसंयत होकर अपूर्वकरण उपशामक हुआ (१४)। इस प्रकार अन्तर प्राप्त होगया। तत्पश्चात् आनिवृत्तिकरण (१५) सूक्ष्मसाम्पराय (१६) उपशान्तकषाय (१७) पुनरपि सूक्ष्मसाम्पराय (१८) अनिवृत्तिकरण (१९) अपूर्वकरण (२०) अप्रमत्तसंयत (२१)प्रमत्तसंयत (२२) और अप्रमत्तसंयत होकर (२३) क्षपकश्रेणीपर चढ़ा। इनमें ऊपरके छह अन्तर्मुहूर्त और मिलाये। इस प्रकार आठ वर्ष और उनतीस अन्तर्मुहूतोंसे कम अपनी स्थिति चक्षुदर्शनी अपूर्वकरण उपशामकका उत्कृष्ट अन्तर है।
इसी प्रकार चक्षुदर्शनी शेष तीन उपशामकोंका भी अन्तर जानना चाहिए । विशेषता यह है कि अनिवृत्तिकरण उपशामकके सत्ताईस अन्तर्मुहूर्त, सूक्ष्मसाम्पराय उपशामकके पच्चीस अन्तर्मुहूर्त और उपशान्तकषायके तेवीस अन्तर्मुहूर्त कम करना चाहिए।
चक्षुदर्शनी चारों क्षपकोंका अन्तर ओधके समान है ॥ २९२ ॥ यह सूत्र सुगम है।
१ चतुर्णा क्षपकाणां सामान्योक्तम् । स. सि. १, ८
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