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१, ६, २९१.] अंतराणुगमे चक्खुदंसणि-अंतरपरूवणं
[१४१ (३) अप्पमत्तो (४) । उवरि छ अंतोमुहुत्ता । एवमट्टवस्सेहि दसअंतोमुहुत्तेहि उणिया चक्खुदंसणिट्ठिदी अप्पमत्तुक्कस्संतरं होदि ।
चदुण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च ओघं ॥ २८९॥
सुगममेदं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ २९० ॥ एदं पि सुगमं । उक्कस्सेण वे सागरोवमसहस्साणि देसूणाणि ॥ २९१ ॥
तं जहा- एक्को अचक्खुदंसणिहिदिमच्छिदो मणुसेसु उववण्णो । गम्भादिअट्ठवस्सण उवसमसम्मत्तमप्पमत्तगुणं च जुगवं पडिवण्णो (१)। अंतोमुहुत्तेण वेदगसम्मत्तं गदो (२)। तदो अंतोमुहुत्तेण अणंताणुबंधिं विसंजोजिदो (३)। दंसणमोहणीयमुवसामिय (४) पमत्तापमत्तपरावत्तसहस्सं कादूण (५) उवसमसेडीपाओग्गअप्पमत्तो जादो (६)। अपुरो (७) अणियट्टी (८) सुहुमो (९) उवसंतो (१०) सुहुमो हुआ। पुनः प्रमत्तसंयत हो (३) अप्रमत्तसंयत हुआ (४)। इनमें ऊपरके छह अन्तर्मुहूर्त
और मिलाये । इस प्रकार आठ वर्ष और दश अन्तर्मुहूतौसे कम चक्षुदर्शनीकी स्थिति ही चक्षुदर्शनी अप्रमत्तसंयतका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
चक्षुदर्शनी चारों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर ओघके समान है ॥ २८९॥
यह सूत्र सुगम है। उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।। २९० ॥ यह सूत्र भी सुगम है।
उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो हजार सागरोपम है ॥ २९१॥
जैसे- अचक्षुदर्शनी जीवोंकी स्थितिमें विद्यमान एक जीव मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। गर्भको आदि लेकर आठ वर्षके द्वारा उपशमसम्यक्त्व और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानको एक साथ प्राप्त हुआ (१)। अन्तर्मुहूर्तके पश्चात् वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (२)। पुन: अन्तर्मुहर्तसे अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन किया (३)। पुनः दर्शनमोहनीयको उपशमा कर (४) प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानसम्बन्धी सहस्रों परिवर्तनोंको करके (५) उपशमश्रेणीके योग्य अप्रमत्तसंयत हुआ (६)। पुनः अपूर्वकरण (७) अनिवृत्तिकरण (८)
१ चतुर्णामुपशमकानां नानाजीवापेक्षया सामान्यवत् । स. सि. १, ८. २ एकजीव प्रति जघन्येनान्तर्मुहर्तः। स. सि. १,८. ३ उत्कर्षेण द्वे सागरोपमसहस्र देशोने । स. सि. १,८.
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