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१, ६, २८२.] अंतराणुगमे चक्खुदंसणि-अंतरपरूवणं
[१३५ असंजदसम्मादिट्ठिस्स उक्कस्संतरं णादमवि' मंदमेहाविजणाणुग्गहढे परूवेमोएक्को अणादियमिच्छादिट्ठी तिण्णि वि करणाणि कादूण अद्धपोग्गलपरियट्टादिसमए पढमसम्मत्तं पडिवण्णो (१)। उवसमसम्मत्तद्धाए छावलियाओ अस्थि त्ति सासणं गदो। अंतरिदो अद्धपोग्गलपरियढें परियट्टिदूण अपच्छिमे भवग्गहणे असंजदसम्मादिट्ठी जादो । लद्धमंतरं (२)। तदो अणंताणुबंधी विसंजोइय (३) विस्संतो (४) दंसणमोहं खविय (५) विस्संतो (६) अप्पमत्तों जादो (७)। पमत्तापमत्तपरावत्तसहस्सं कादण (८) खवगसेढीपाओग्गअप्पमत्तो जादो (९)। उवरि छ अंतोमुहुत्ता । एवं पण्णारसेहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणमद्धपोग्गलपरियट्टमसंजदसम्मादिहिस्स उक्कस्संतरं ।
एवं संजममग्गणा समत्ता । दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणीसु मिच्छादिट्ठीणमोघं ॥ २८२ ॥ कुदो ? णाणाजीवे पडुच्च अंतराभावेण, एगजीवगयअंतोमुहुत्तमेत्तजहण्णंतरेण
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___ असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर यद्यपि ज्ञात है, तथापि मंदबुद्धि जनोंके अनुग्रहार्थ प्ररूपण करते हैं- एक अनादि मिथ्यादृष्टि जीव तीनों करणोंको करके अर्धपुद्गलपरिवर्तनके आदि समयमें प्रथमोपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ (१)। उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियां अवशिष्ट रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुआ। पश्चात् अन्तरको प्राप्त हो अर्धपुद्गलपरिवर्तन तक परिवर्तन करके अन्तिम भवमें असंयतसम्यग्दृष्टि हुआ। इस प्रकार अन्तर प्राप्त होगया (२)। तत्पश्चात् अन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके (३) विश्राम ले (४) दर्शनमोहनीयका क्षय करके (५) विश्राम ले (६) अप्रमत्तसंयत हुआ (७)। पुनः प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानसम्बन्धी सहस्रों परिवर्तनोंको करके (८) क्षपकश्रेणीके प्रायोग्य अप्रमत्तसंयत हुआ (९)। इनमें ऊपरके छह अन्तमुहूर्त और मिलाये । इस प्रकार पन्द्रह अन्तर्मुहूतौसे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
इस प्रकार संयममार्गणा समाप्त हुई। दर्शनमार्गणाके अनुवादसे चक्षुदर्शनी जीवोंमें मिथ्यादृष्टियोंका अन्तर ओषके समान है ॥ २८२ ॥
क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरका अभाव होनेसे, तथा एक जीवगत
१ प्रतिषु —णादमदि' इति पाठः। २ प्रतिषु ‘पमत्तो' इति पाठः । ३ दर्शनानुवादेन चक्षुर्दर्शनिषु मिथ्यादृष्टेः सामान्यवत् । स. सि. १, ८. ४ अप्रतौ -जीवेसु' इति पाठः ।
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