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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ६, २८.. उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि देसूणाणि ॥ २८० ॥
तं जहा- एक्को अट्ठावीसमोहसंतकम्मिओ मिच्छादिट्ठी सत्तमाए पुढवीए उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो (१) विस्संतो (२) विसुद्धो (३) सम्मत्तं पडिवज्जिय अंतरिदो अंतोमुहुत्तावसेसे जीविए मिच्छत गदो (४)। लद्धमंतरं । तिरिक्खाउअंबंधिय (५) विस्समिय (६) मदो तिरिक्खो जादो । छहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि मिच्छत्तुक्कस्संतरं ।
सासणसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीणमोघं ॥ २८१ ॥
कुदो ? सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमुहुत्तं; उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्ट देसूणं । असंजदसम्मादिट्ठीसु णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतर; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं; उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणमिच्चदेहि तदो भेदाभावा ।
उक्त जीवोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तेतीस सागरोपम है ॥२८ ॥
जैसे- मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक मिथ्यादृष्टि जीव सातवीं पृथिवीमें उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो (१) विश्राम ले (२) विशुद्ध हो (३) सम्यक्त्वको प्राप्त होकर अन्तरको प्राप्त हुआ और जीवनके अन्तर्मुहूर्त कालप्रमाण अवशेष रहने पर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ (४)। इस प्रकार अन्तर लब्ध होगया। पीछे तिर्यंच आयुको बांधकर (५) विश्राम ले (६) मरा और तिर्यंच हुआ । इस प्रकार छह अन्तर्मुहूर्तोंसे कम तेतीस सागरोपमकाल मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अन्तर होता है।
असंयमी सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्तर ओघके समान है ॥ २८१ ॥
क्योंकि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और पल्योपमका असंख्यातवां भाग अन्तर है; एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे पल्योपमका असंख्यातवां भाग और अन्तर्मुहूर्त अन्तर है। तथा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल है। असंयतसम्यग्दृष्टियोंमें नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, निरन्तर है; एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन है। इस प्रकार ओघसे कोई भेद नहीं है।
१ उत्कर्षेण त्रयस्त्रिंशत्सागरोपमाणि देशोनानि । स. सि. १,८ २ शेषाणां त्रयाणां सामान्यवत् । स. सि. १,८.
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