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१, ६, २६५.] अंतराणुगमे संजद-अंतरपरूवर्ण
[ १२९ एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमुहुत्तं ॥ २६२ ॥
तं जहा- पमत्तो अप्पमत्तगुणं गंतूण सव्वजहण्णेण कालेण पुणो पमत्तो जादो । लद्धमंतरं । एवमप्पमत्तस्स वि वत्तव्यं ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २६३ ॥ - तं जहा- एको पमत्तो अप्पमत्तो होदूण चिरकालमच्छिय पमत्तो जादो । लद्धमंतरं । अप्पमत्तस्स उच्चदे- एक्को अप्पमत्तो पमत्तो होदृण सबचिरमंतोमुहुत्तमच्छिय अप्पमत्तो जादो । लद्धमंतरं ।
दोण्हमुवसामगाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥२६४॥
अवगयत्थं । उक्कस्सेण वासपुधत्तं ॥ २६५॥ सुगममेदं ।
उक्त संयतोंका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ २६२ ॥
जैसे- एक प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तगुणस्थानको जाकर सर्वजघन्य कालसे पुन: प्रमत्तसंयत होगया। इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ। इसी प्रकार अप्रमत्तसंयतका भी अन्तर कहना चाहिए।
उक्त संयतोंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ॥ २६३ ॥
जैसे-एक प्रमत्तसंयत जीव अप्रमत्तसंयत होकर और दीर्घ अन्तर्मुहूर्तकाल तक रह करके प्रमत्तसंयत होगया। इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ। अप्रमत्तसंयतका अन्तर कहते है- एक अप्रमत्तसंयत जीव प्रमत्तसंयत हो करके सबसे बड़े अन्तर्मुहूर्तकाल तक रहकर अप्रमत्तसंयत होगया । इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ।
सामायिक और छेदोपस्थापनासंयमी अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण, इन दोनों उपशामकोंका अन्तर कितने काल होता है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय अन्तर है ॥२६४॥
इस सूत्रका अर्थ शात है। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है ॥ २६५ ॥ यह सूत्र सुगम है।
१ एकजीवं प्रति जघन्यमुत्कृष्टं चान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १,८. २ द्वयोरुपचमकयो नाजीवापेक्षया सामान्यवत् । स. सि. १,८.
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