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________________ ११८] छक्खडागमे जीवद्वाणं [ १, ६, २३७. तय-काविट्ठदेवेसु तेरससागरोवमाउट्ठिदिएसु उववण्णो (१३) । तदो चुदो पुव्वकोडाउएस मणुसेसु उबवण्णो । तत्थ संजममणुपालिय बावीससागरोवमाउडिदिएसु देवेसु ववण्णो । ( २२ ) । तदो चुदो पुव्त्रकोडा उएस मणुसेसु उबवण्णो । तत्थ संजममणुपालिय खइयं पट्टaिय एक्कत्तीस सागरोवमा उट्ठदिएस देवेसु उववण्णो (३१) । तदो चुदो goaकोडाउएस मणसेसु उववण्णो अंतोमुहुत्तावसेसे संसारे संजमासंजमं गदो । लद्धमंतरं (५) । विसुद्ध अप्पमत्तो जादो (६) । पमत्तापमत्त परावत्तसहस्सं काढूण (७) खवगसेढी पाओग्गअप्पमत्तो जादो (८) । उवरि छ अंतोमुहुत्ता । एवं चोदसेहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणचदुपुव्वकोडीहि सादिरेयाणि छावट्टिसागरोवमाणि उक्कस्संतरं । एवमोधिगाणिसंजदासंजदस्त वि अंतरं वत्तव्यं । णवरि आभिणिबोहियणाणस्स आदिदो अंतोमुहुत्ते आदि काढूण अंतरा - वेदव्वो । पुणो पण्णारसहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणाणि चदुहि पुत्रकोडीहि सादिरेयाणि छावट्ठिसागरोवमाणि उप्पादेदव्त्राणि १ णेदं घडदे, सण्णिसम्मुच्छिमपज्जत्तएस संजमा संजमस्सेव ओहिणाणुवसमसम्मत्ताणं संभवाभावादो । तं कथं गव्वदे ? ' पंचिदिएसु उवसामेंतो पमकी आयुवाले लांव-कापिष्ठ देवोंमें उत्पन्न हुआ । पश्चात् वहांसे च्युत हो पूर्वकोटीकी आयुबाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। वहां पर संयमको परिपालन कर बाईस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ (२२) । वहांसे च्युत होकर पूर्वकोटीकी आयुबाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहां पर संयमको परिपालन कर और क्षायिकसम्यक्त्वको धारणकर इकतीस सागरोपमकी आयुस्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ (३१)। तत्पश्चात् वहांसे च्युत होकर पूर्वकोटीकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ और संसारके अन्तर्मुहूर्त अवशेष रह जानेपर संयमासंयमको प्राप्त हुआ । इस प्रकार अन्तर लब्ध हुआ (५) । पश्चात् विशुद्ध हो अप्रमत्तसंयत हुआ ( ६ ) । पुनः प्रमत्त- अप्रमत्तगुणस्थानसम्बन्धी सहस्रों परावर्तनोंको करके (७) क्षपकश्रेणीके योग्य अप्रमत्तसंयत हुआ ( ८ ) । इनमें ऊपरके क्षपकश्रेणीसम्बन्धी छह अन्तर्मुहूर्त और मिलाये । इस प्रकार चौदह अन्तमुहाँसे कम चार पूर्वकोटियोंसे साधिक छ्यासठ सागरोपम उत्कृष्ट अन्तर होता है । इसी प्रकारसे अवधिज्ञानी संयतासंयतका भी उत्कृष्ट अन्तर कहना चाहिए । विशेष बात यह है कि आभिनिबोधिकज्ञान के आदिके अन्तर्मुहूर्तसे आदि करके अन्तरको प्राप्त कराना चाहिए । पुनः पन्द्रह अन्तर्मुहूतौसे कम चार पूर्वकोटियों से साधिक छयासठ सागरोपम उत्पन्न करना चाहिए ? समाधान- उपर्युक्त शंकामें बतलाया गया यह अन्तरकाल घटित नहीं होता है, क्योंकि, संज्ञी सम्मूच्छिम पर्याप्तकों में संयमासंयमके समान अवधिज्ञान और उपशमvetrast संभवताका अभाव है । शंका -यह कैसे जाना जाता है कि संज्ञी सम्मूच्छिम पर्याप्तक जीवोंमें अवधिज्ञान और उपशमसम्यक्त्वका अभाव है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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